लेह में हिंसक प्रदर्शन: दो मौत, 70 से अधिक घायल, मोदी सरकार के लिये बड़ा द्वंद्व

Ranjit Sapre सितंबर 26, 2025 राजनीति 10 टिप्पणि
लेह में हिंसक प्रदर्शन: दो मौत, 70 से अधिक घायल, मोदी सरकार के लिये बड़ा द्वंद्व

प्रदर्शन का क्रम और उसकी उग्रता

24 सितंबर 2025 को लेह में लेह प्रदर्शन एक शांत शपथ के रूप में शुरू हुआ, जब लह एपेक्स बॉडी (LAB) की युवा शाखा ने 11:30  बजे बीजपी कार्यालय के सामने रोक लगाए। इसका कारण था सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगक और उनके 15 साथी, जो 10 सितंबर से भूख हड़ताल में थे। दो हड़ताल करने वाले अस्पताल में भर्ती थे, जिससे युवाओं ने पूरे शहर में शटडाउन का आह्वान किया।

हालाँकि, पुलिस ने भीड़ को बिखेरने की कोशिश करते ही पत्थरबारी शुरू कर दी। युवक ने पत्थर, डंडा और गैस सिलिंडर जल्दी से निकाले, जबकि पुलिस ने जलाबाद और गदाले का प्रयोग किया। कुछ ही मिनटों में परिस्थितियों का बदलना अतिवादी गाथा बन गया: बीजपी कार्यालय की फर्नीचर, दस्तावेज़ और एक सीआरपीएफ वाहन को आग में फेंका गया, लैडाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल (LAHDC) की इमारत पर भी आक्रमण हुआ।

भीड़ के बीच स्कूल‑कॉलेज के छात्र, मोनक और बेरोजगार युवाओं की उपस्थिति ने जनसांख्यिकीय आयु वर्ग को स्पष्ट किया – युवा वर्ग अपनी पहचान, रोजगार और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिये तत्पर था। चार लोगों की जान गई, 70 से अधिक लोग चोटिल हुए, कई लोग गंभीर जलन के कारण अस्पताल में भर्ती हुए।

सरकारी प्रतिक्रिया और भविष्य की चुनौतियाँ

सरकारी प्रतिक्रिया और भविष्य की चुनौतियाँ

तुरंत बाद प्रदेश सरकार ने सेक्शन 163 के तहत प्रतिबंध आदेश जारी किया, चार से अधिक लोगों की सभाओं पर प्रतिबंध लगा और लेह में कर्फ़्यू लगा दिया। पुलिस ने ध्वनि नियंत्रण, बैनर तोड़ने और जमीनी कार्यवाही को तेज़ करने के अलावा, हड़तालकर्ता सोनम वांगक को वीडियो संदेश में शांति से संघर्ष करने का आह्वान किया।

प्रदर्शन के मूलभूत माँगें चार‑स्तरीय रूप में दोहराई जा रही हैं:

  • लद्दाख का पूर्ण राज्यत्व, जिससे स्थानीय प्रशासन को अधिक शक्ति मिले।
  • संविधान के छठे अनुसूची में लद्दाख को शामिल करना, ताकि जनजातीय अधिकार सुरक्षित रहें।
  • स्थानीय नौकरियों में आरक्षण, जिससे बाहरी लोगों की भीड़भाड़ कम हो।
  • भूमि एवं सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा, ताकि पारंपरिक जीवनशैली न खोए।

इन माँगों ने बौद्ध और मुस्लिम समुदाय दोनों को एकजुट कर रखा है, और यह गठबंधन 2019 के जम्मू‑कश्मीर पुनर्गठन के बाद तीव्र हुआ। लद्दाख को 2019 में केन्द्र शासित प्रदेश (UT) बनाना, कई लोगों को उनके पारम्परिक अधिकारों से वंचित महसूस करवाता है।

सुरक्षा के दृष्टिकोण से यह मामला और जटिल हो गया है। लद्दाख भारत‑चीन तथा भारत‑पाकिस्तान सीमा के साथ स्थित है, जहाँ 2020 के गॉलवाँ घाटी संघर्ष के बाद तनाव में वृद्धि हुई है। कश्मीर‑लद्दाख को मिलाकर सेना की तैनाती, और Kargil में 1999 की लड़ाई के बाद यू.एस. पाबंदियों के चलते यह क्षेत्र रणनीतिक मायने में अत्यधिक संवेदनशील है। इस पृष्ठभूमि में स्थानीय असंतोष को देखना, केन्द्रीय सरकार की विदेश एवं रक्षा नीति दोनों के लिये चुनौती बन जाता है।

वर्तमान में, लद्दाख में राजनीतिक माहौल अस्थिर है, और युवा वर्ग नई आवाज़ें उठाने के लिये तैयार दिखाई देता है। हालिया घटनाओं ने दर्शाया कि शांति के मार्ग पर चलना आसान नहीं, लेकिन यही सरकार की चुनौती भी है – स्थानीय मांगों को समझते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा को संतुलित करना।

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    24 सितंबर को लेह में प्रदर्शन भड़का, जब भूख हड़ताल के दौरान सोने वाले सोनम वांगक की स्वास्थ्य बिगड़ने से युवाओं ने बंदीकरण किया। पुलिस के साथ तख्तापलट में 4 फुटकर, 70 से अधिक घायल और सरकारी इमारतों में अग्निकाण्ड हुआ। यह घटना लद्दाख के राजकीय दर्जे, जनजातीय संरक्षण और सीमा सुरक्षा के मुद्दों को फिर से केंद्र में लाती है।

10 टिप्पणि

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    Ganesh Satish

    सितंबर 26, 2025 AT 05:15

    अरे भाई!!! क्या बात है, लेह में फिर से आँधियों का बहाव शुरू हो गया!!! सरकारी ताकत और जन असंतोष का टकराव, जैसे दो बिजली के टॉरनों की टक्कर!!! क्या ये मंचन फिर से वही पुरानी कहानी दोहराएगा??? क्या बेजोड़ अभिव्यक्ति है, जब युवा वर्ग की आवाज़ धुलाई की गली में भी गूँजती है!!!

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    Midhun Mohan

    अक्तूबर 5, 2025 AT 11:28

    भाई सुना एकदम हार्दिक दुख है... लोग घायल हुए और दो लोगों की जान गई, बहुत... गहरा दुख... इस स्थिति में हमें एकजुट रहना चाहिए, समर्थन देना चाहिए!!! सशक्त युवा शक्ति को सही दिशा देना हमारा कर्तव्य है!!!

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    Archana Thakur

    अक्तूबर 14, 2025 AT 17:42

    यहां की स्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा के दायरे में आती है। लद्दाख की रणनीतिक महत्ता के कारण, केंद्र को ज़रूरी है कि वह दृढ़ता से स्थानीय माँगों को संतुलित करे, अन्यथा यह एक बड़िया विरोधी प्रयोग बन सकता है।

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    Ketkee Goswami

    अक्तूबर 23, 2025 AT 23:55

    दिल से कहूँ तो ये युवा ऊर्जा, चमकता सूरज जैसा है! रंग-बिरंगी उम्मीदों के साथ, वे अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठा रहे हैं। हमें उनका साथ देना चाहिए, क्योंकि उनका उत्साह हमारे भविष्य का रंग है।

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    Shraddha Yaduka

    नवंबर 2, 2025 AT 05:08

    सच्ची बात, युवा ऊर्जा को सही दिशा में मोड़ने के लिये मार्गदर्शन जरूरी है। हम उनके साथ खड़े होते हैं।

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    gulshan nishad

    नवंबर 11, 2025 AT 11:22

    क्या दृश्य था! एक बार फिर दिखा दिया कि जनता की असहिष्णुता किसे नहीं डराती। बस, यही स्थिति है जब सत्ता का धड़ाधड़ जवाब देना पड़ता है।

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    Ayush Sinha

    नवंबर 20, 2025 AT 17:35

    बिल्कुल भी नहीं, यह सब सिर्फ उकसावे का जाल है। सरकार का हर कदम एक ही दिशा में, नागरिकों को नियंत्रण में रखने के लिए, और ये प्रदर्शन सिर्फ एक परिदृश्य है।

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    Saravanan S

    नवंबर 29, 2025 AT 23:48

    भाई, अपने आप को समझना आसान नहीं। इस तरह के तनाव में हमें शांति बनाए रखनी चाहिए, सबको एक समझौते की ओर ले जाना चाहिए... यही सही रास्ता है।

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    Alefiya Wadiwala

    दिसंबर 9, 2025 AT 06:02

    लेह में हुए इस हिंसक प्रदर्शन को देखते हुए, हम कई सामाजिक-राजनीतिक कारकों का विश्लेषण कर सकते हैं। सबसे पहले, वह ऐतिहासिक संदर्भ जिसका उल्लेख अक्सर किया जाता है, वह 2019 में जम्मू‑कश्मीर के पुनर्गठन के बाद लद्दाख को यूटी के रूप में स्थापित किया गया था, जिसने स्थानीय जनसंख्या में स्वायत्तता की इच्छा को तीव्र बना दिया। दूसरा पहलू यह है कि युवा वर्ग, जो एक समय में शैक्षणिक और रोजगार के अवसरों की तलाश में था, अब आर्थिक व सामाजिक असुरक्षा के कारण असंतोष की स्थिति में है। तीसरे बिंदु पर, सीमा सुरक्षा की विशेषता को नहीं भूलेँ, क्योंकि लद्दाख का भारत‑चीन तथा भारत‑पाकिस्तान सीमाओं के साथ आभासी रूप से जुड़ाव इसे एक रणनीतिक बिंदु बनाता है।

    इन तत्त्वों को मिलाकर हम देख सकते हैं कि प्रदर्शन की मूलभूत माँगें-पूर्ण राज्यत्व, छठी अनुसूची में शामिल होना, स्थानीय नौकरियों में आरक्षण और सांस्कृतिक‑भूमि अधिकारों का संरक्षण-सम्पूर्ण रूप से समग्र विकास, सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास हैं। इस प्रक्रिया में प्रतिपादन करने वाले समूहों ने बौद्ध और मुस्लिम दोनों समुदायों को एकजुट किया, जो पूर्व में अक्सर विभाजन की स्थिति में रहते थे। इस एकजुटता का महत्व इस बात में है कि यह दर्शाता है कि लद्दाख के लोग अपने सांस्कृतिक पहचान को नहीं खोना चाहते, बल्कि उसे राष्ट्रीय ढांचे में सुरक्षित रखना चाहते हैं।

    आगे चलकर, यह आवश्यक होगा कि केंद्र सरकार न केवल कड़े सुरक्षा उपायों को लागू करे, बल्कि स्थानीय स्वायत्तता को सुदृढ़ करने वाले संवैधानिक संशोधनों को भी प्राथमिकता दे। इस दिशा में यदि संवादात्मक मंच स्थापित किया जाए तो मौजूदा तनाव को कम करने में मदद मिल सकती है। अंत में, यह स्पष्ट है कि युवा वर्ग के उत्साह और ऊर्जा को सही दिशा में मोड़ना, लद्दाख की स्थिरता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा दोनों में सहायक सिद्ध होगा।

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    Paurush Singh

    दिसंबर 18, 2025 AT 12:15

    लगता है आपका विश्लेषण बहुत सतही है। तथ्य यह है कि स्थानीय मांगें सिर्फ राजनीतिक हड़ताल नहीं हैं, बल्कि क़ानूनी अधिकारों के स्पष्ट उल्लंघन हैं। आपको इससे आगे जाकर समाधान बताना चाहिए, सिर्फ आलोचना से कुछ नहीं होगा।

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