प्रदर्शन का क्रम और उसकी उग्रता
24 सितंबर 2025 को लेह में लेह प्रदर्शन एक शांत शपथ के रूप में शुरू हुआ, जब लह एपेक्स बॉडी (LAB) की युवा शाखा ने 11:30 बजे बीजपी कार्यालय के सामने रोक लगाए। इसका कारण था सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगक और उनके 15 साथी, जो 10 सितंबर से भूख हड़ताल में थे। दो हड़ताल करने वाले अस्पताल में भर्ती थे, जिससे युवाओं ने पूरे शहर में शटडाउन का आह्वान किया।
हालाँकि, पुलिस ने भीड़ को बिखेरने की कोशिश करते ही पत्थरबारी शुरू कर दी। युवक ने पत्थर, डंडा और गैस सिलिंडर जल्दी से निकाले, जबकि पुलिस ने जलाबाद और गदाले का प्रयोग किया। कुछ ही मिनटों में परिस्थितियों का बदलना अतिवादी गाथा बन गया: बीजपी कार्यालय की फर्नीचर, दस्तावेज़ और एक सीआरपीएफ वाहन को आग में फेंका गया, लैडाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल (LAHDC) की इमारत पर भी आक्रमण हुआ।
भीड़ के बीच स्कूल‑कॉलेज के छात्र, मोनक और बेरोजगार युवाओं की उपस्थिति ने जनसांख्यिकीय आयु वर्ग को स्पष्ट किया – युवा वर्ग अपनी पहचान, रोजगार और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिये तत्पर था। चार लोगों की जान गई, 70 से अधिक लोग चोटिल हुए, कई लोग गंभीर जलन के कारण अस्पताल में भर्ती हुए।
सरकारी प्रतिक्रिया और भविष्य की चुनौतियाँ
तुरंत बाद प्रदेश सरकार ने सेक्शन 163 के तहत प्रतिबंध आदेश जारी किया, चार से अधिक लोगों की सभाओं पर प्रतिबंध लगा और लेह में कर्फ़्यू लगा दिया। पुलिस ने ध्वनि नियंत्रण, बैनर तोड़ने और जमीनी कार्यवाही को तेज़ करने के अलावा, हड़तालकर्ता सोनम वांगक को वीडियो संदेश में शांति से संघर्ष करने का आह्वान किया।
प्रदर्शन के मूलभूत माँगें चार‑स्तरीय रूप में दोहराई जा रही हैं:
- लद्दाख का पूर्ण राज्यत्व, जिससे स्थानीय प्रशासन को अधिक शक्ति मिले।
- संविधान के छठे अनुसूची में लद्दाख को शामिल करना, ताकि जनजातीय अधिकार सुरक्षित रहें।
- स्थानीय नौकरियों में आरक्षण, जिससे बाहरी लोगों की भीड़भाड़ कम हो।
- भूमि एवं सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा, ताकि पारंपरिक जीवनशैली न खोए।
इन माँगों ने बौद्ध और मुस्लिम समुदाय दोनों को एकजुट कर रखा है, और यह गठबंधन 2019 के जम्मू‑कश्मीर पुनर्गठन के बाद तीव्र हुआ। लद्दाख को 2019 में केन्द्र शासित प्रदेश (UT) बनाना, कई लोगों को उनके पारम्परिक अधिकारों से वंचित महसूस करवाता है।
सुरक्षा के दृष्टिकोण से यह मामला और जटिल हो गया है। लद्दाख भारत‑चीन तथा भारत‑पाकिस्तान सीमा के साथ स्थित है, जहाँ 2020 के गॉलवाँ घाटी संघर्ष के बाद तनाव में वृद्धि हुई है। कश्मीर‑लद्दाख को मिलाकर सेना की तैनाती, और Kargil में 1999 की लड़ाई के बाद यू.एस. पाबंदियों के चलते यह क्षेत्र रणनीतिक मायने में अत्यधिक संवेदनशील है। इस पृष्ठभूमि में स्थानीय असंतोष को देखना, केन्द्रीय सरकार की विदेश एवं रक्षा नीति दोनों के लिये चुनौती बन जाता है।
वर्तमान में, लद्दाख में राजनीतिक माहौल अस्थिर है, और युवा वर्ग नई आवाज़ें उठाने के लिये तैयार दिखाई देता है। हालिया घटनाओं ने दर्शाया कि शांति के मार्ग पर चलना आसान नहीं, लेकिन यही सरकार की चुनौती भी है – स्थानीय मांगों को समझते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा को संतुलित करना।
Ganesh Satish
सितंबर 26, 2025 AT 06:15अरे भाई!!! क्या बात है, लेह में फिर से आँधियों का बहाव शुरू हो गया!!! सरकारी ताकत और जन असंतोष का टकराव, जैसे दो बिजली के टॉरनों की टक्कर!!! क्या ये मंचन फिर से वही पुरानी कहानी दोहराएगा??? क्या बेजोड़ अभिव्यक्ति है, जब युवा वर्ग की आवाज़ धुलाई की गली में भी गूँजती है!!!
Midhun Mohan
अक्तूबर 5, 2025 AT 12:28भाई सुना एकदम हार्दिक दुख है... लोग घायल हुए और दो लोगों की जान गई, बहुत... गहरा दुख... इस स्थिति में हमें एकजुट रहना चाहिए, समर्थन देना चाहिए!!! सशक्त युवा शक्ति को सही दिशा देना हमारा कर्तव्य है!!!
Archana Thakur
अक्तूबर 14, 2025 AT 18:42यहां की स्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा के दायरे में आती है। लद्दाख की रणनीतिक महत्ता के कारण, केंद्र को ज़रूरी है कि वह दृढ़ता से स्थानीय माँगों को संतुलित करे, अन्यथा यह एक बड़िया विरोधी प्रयोग बन सकता है।
Ketkee Goswami
अक्तूबर 24, 2025 AT 00:55दिल से कहूँ तो ये युवा ऊर्जा, चमकता सूरज जैसा है! रंग-बिरंगी उम्मीदों के साथ, वे अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठा रहे हैं। हमें उनका साथ देना चाहिए, क्योंकि उनका उत्साह हमारे भविष्य का रंग है।
Shraddha Yaduka
नवंबर 2, 2025 AT 07:08सच्ची बात, युवा ऊर्जा को सही दिशा में मोड़ने के लिये मार्गदर्शन जरूरी है। हम उनके साथ खड़े होते हैं।