शक्तिकांत दास बने प्रधानमंत्री मोदी के नए प्रधान सचिव: अनुभव और विश्वास के साथ नई जिम्मेदारी

Ranjit Sapre फ़रवरी 27, 2025 राजनीति 14 टिप्पणि
शक्तिकांत दास बने प्रधानमंत्री मोदी के नए प्रधान सचिव: अनुभव और विश्वास के साथ नई जिम्मेदारी

शक्तिकांत दास की नव नियुक्ति का महत्व

सरकारी प्रशासन में एक और नया फेरबदल देखने को मिला है, जब पूर्व रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांत दास को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव-2 के रूप में नियुक्त किया गया। यह प्रधानमंत्री कार्यालय में पहली बार इस विशेष पद की स्थापना की गई है। इस पद के माध्यम से दास प्रधानमंत्री के साथ उनकी कार्यकाल के अंत तक या आगे किसी नए आदेश तक अपनी सेवाएं देंगे।

शक्तिकांत दास में लगभग 40 वर्षों का प्रशासनिक अनुभव है और उन्होंने तमिलनाडु कैडर के 1980 बैच के IAS अधिकारी के रूप में कई महत्वपूर्ण विभागों में सेवाएं दी हैं। वित्त, कराधान, और अवसंरचना क्षेत्रों में उनके द्वारा निभाई गई भूमिकाएं अत्यंत महत्वपूर्ण रही हैं। उनका सबसे यादगार योगदान 2016 में नोटबंदी के दौरान था, जब उन्होंने बाजार को स्थिर करने के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

नोटबंदी से लेकर महामारी तक

नोटबंदी से लेकर महामारी तक

नोटबंदी के दौरान दास ने भारतीय रिजर्व बैंक के साथ समन्वय स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई, जिससे अर्थव्यवस्था को बड़ी चुनौती का सामना करने में सहायता मिली। इसके अतिरिक्त, कोरोना महामारी के समय भी उन्होंने आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की विभिन्न नीतियों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया।

2018 से 2023 तक RBI गवर्नर के रूप में उनकी सेवा ने न केवल सरकार और बैंक के रिश्ते को पुनः स्थापित किया, बल्कि बाजार और अन्य भागीदारों के साथ बेहतर संवाद को भी बढ़ावा दिया। दिल्ली स्थित सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने वाले दास सरकार में संकट प्रबंधन और रणनीतिक सोच के लिए जाने जाते हैं।

प्रधानमंत्री द्वारा यह नियुक्ति दास के अनुभव और संकट प्रबंधन में उनके विश्वास को ही नहीं, बल्कि उनकी नीति सततता और गहन समझ को भी दर्शाती है।

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14 टिप्पणि

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    Alefiya Wadiwala

    फ़रवरी 27, 2025 AT 19:21

    शक्तिकांत दास की नियुक्ति को समझना केवल एक व्यक्तिगत करियर परिवर्तन नहीं, बल्कि भारतीय सार्वजनिक प्रशासन के एक बड़े गहन अवलोकन की आवश्यकता है।
    वह 40 वर्षों का वैभवी अनुभव लेकर आते हैं, जिसमें उन्होंने न केवल वित्तीय नीतियों को आकार दिया, बल्कि आर्थिक संकटों के दौरान रणनीतिक रूप से सरकार के साथ तालमेल भी बिठाया।
    उनका योगदान नोटबंदी के समय अत्यंत निर्णायक था, जब उन्होंने RBI के साथ मिलकर बाजार को स्थिर करने के लिए कई जटिल कदम उठाए।
    उनकी भूमिका को अक्सर 'आधारभूत पूंजी' के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसका मतलब है कि वह बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए निरंतर समर्थन प्रदान करते हैं।
    किंतु यह भी सच है कि ऐसी नियुक्तियां अक्सर राजनीतिक भरोसे के आधार पर की जाती हैं, और यह सवाल उठता है कि क्या दास की विशेषज्ञता ही एकमात्र कारण है।
    वर्तमान में नरेंद्र मोदी की महज एक ही इच्छा है कि वह अपने प्रशासन को ऐसे व्यक्तियों से घेरना चाहता है जो उसके विचारों के साथ पूरी तरह सहमत हों।
    यह दृष्टिकोण, यद्यपि कुछ हद तक व्यावहारिक दिखता है, परन्तु लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ टकरा सकता है, जहाँ बहुलता और विविधता को महत्व दिया जाता है।
    यदि हम दास की शैक्षणिक पृष्ठभूमि को देखें तो स्पष्ट है कि सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में स्नातकोत्तर ने उन्हें एक व्यापक दृष्टिकोण दिया, जो बहु‑आयामी नीति विश्लेषण में सहायक हो सकता है।
    फिर भी, इतिहास का अध्ययन जरूरी नहीं कि व्यावहारिक निर्णय लेने में कुशलता प्रदान करे, क्योंकि सिद्धांत और वास्तविकता के बीच अक्सर अंतर रहता है।
    इसीलिए, हमें यह देखना चाहिए कि दास कैसे अपनी शैक्षणिक ज्ञान को वास्तविक प्रशासनिक चुनौतियों में परिवर्तित करेंगे।
    पिछले वर्षों में उन्होंने आर्थिक स्थिरता के लिए कई बार RBI को मार्गदर्शन किया, लेकिन आज का भारत आर्थिक रूप से अधिक जटिल और वैश्विक चुनौतियों से भरा हुआ है।
    उनके पास डिजिटल भुगतान, मुद्रा स्राव, और अब तक के सबसे बड़े आर्थिक पुनर्गठन के विषयों में वास्तविक अनुभव है, जो निश्चित रूप से लाभकारी हो सकता है।
    परन्तु यह भी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि वह एक पूर्व RBI गवर्नर भी हैं, जिससे संभावित हितों के टकराव की संभावना उत्पन्न हो सकती है।
    ऐसे टकराव को प्रबंधित करने के लिए पारदर्शी प्रक्रियाओं और उत्तरदायित्व की स्पष्टता आवश्यक है, और यह भाजपा शासन की नीति के साथ कितना संगत है, यह प्रश्न बना रहता है।
    अंत में, दास की नियुक्ति को केवल व्यक्तिगत सम्मान के रूप में नहीं, बल्कि एक व्यापक प्रशासनिक रणनीति के हिस्से के रूप में देखना चाहिए, जहाँ उसका अनुभव, उसकी संबद्धता, और उसकी नीति‑निर्माण क्षमता सभी को समान रूप से परखा जाएगा।

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    Paurush Singh

    मार्च 8, 2025 AT 11:41

    शक्तिकांत दास की नियुक्ति को हम एक प्रतीकात्मक कदम के रूप में नहीं, बल्कि भारतीय संघीय संरचना के पुनर्निर्धारण के रूप में देखना चाहिए।
    उनका 40‑साल का अनुभव निस्संदेह गहरा है, फिर भी आज के समय में रणनीतिक सोच में आध्यात्मिक प्रश्नों का स्थान भी आवश्यक है।
    नोटबंदी के दौरान उनकी भूमिका को अक्सर सफल माना गया, पर यह याद रखें कि आर्थिक स्थिरता केवल तकनीकी हस्तक्षेप से नहीं आती।
    इस पद की नई जिम्मेदारी को वह किस प्रकार मातृदेश के विकास के साथ संतुलित करेंगे, यही असली परीक्षा है।
    अंत में, हमें यह देखना होगा कि उनका व्यक्तिगत विश्वास सरकारी नीतियों को किस हद तक प्रभावित करता है।

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    Sandeep Sharma

    मार्च 17, 2025 AT 04:01

    वाह, दास जी को प्रधान सचिव‑2 बनाना कमाल की चीज़ है! 😎 उन्होंने RBI में जो किया, वो अब सीधे पीएम के दफ़्तर तक पहुँच रहा है।
    अब देखना होगा कि क्या वो आधे‑भुजावले पकड़ कर प्रधानमंत्री की नई योजना को त्वरित गति देंगे। 👀 भारत की आर्थिक पागलपन में एक और नया चेहरा जुड़ गया है। 🚀

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    Mita Thrash

    मार्च 25, 2025 AT 20:21

    शक्तिकांत दास का प्रोफ़ाइल एक हाइब्रिड मैक्रोइकॉनॉमिक एन्हांसमेंट फ्रेमवर्क के रूप में विश्लेषण किया जा सकता है; उनका प्रशासनिक दायरा फाइनेंशियल इंटीग्रेशन से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर एग्जीक्यूशन तक विस्तृत है।
    कॅडरियल एलीटिज़्म के संदर्भ में उनका ट्रीडिशनल बैकग्राउंड एक पॉज़िटिव नेटवर्क सिमेट्री को इन्क्यूबेट कर सकता है, जो नीति‑निर्माण में क्लासिकल पॉप्युलिजन की तुलना में अधिक स्थिरता प्रदान करता है।
    नोटबंदी के दौरान उनका स्ट्रैटेजिक इनपुट एक रेडर-ड्रिवेन पैराडाइम का उदाहरण था, जहाँ उन्होंने लेक्ज़ी‑कंट्रोल मैकेनिज्म को ऑप्टिमाइज़ किया।
    भविष्य में प्रधान सचिव‑2 के रूप में उनका रोल एक एग्जीक्यूटिव मॉड्यूल के रूप में कार्य करेगा, जो प्रॉक्सी‑वैलिडेशन और रीसेंसिंग प्रक्रियाओं को सिंक्रोनाइज़ करेगा।
    हालांकि, इस एलीट एजेंडा का इम्प्लीमेंटेशन इन्क्लूसिव डिवीजनल टॉपिक्स को भी ध्यान में रखे बिना संभव नहीं है, इसलिए एक कॉन्टिन्जेंसी प्लैन की आवश्यकता अवश्य होगी।

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    shiv prakash rai

    अप्रैल 3, 2025 AT 12:41

    शक्तिकांत दास को प्रधान सचिव‑2 बनाना जैसे बर्गर में बर्गर डालना, थोड़ा ज्यादा ही दिख रहा है।
    उन्हें नोटबंदी में जो शुप्पड़ किया, वह अब प्रधानमंत्री के बगल में वॉकिंग डेड की तरह रहेगा।
    एक्शन में दिखते‑दिखाते वो शायद कागज़ी काम में ही फँस जाएँ।
    फिर भी, जो लोग ‘सुरक्षा’ शब्द सुनते ही गहरी सांस लेते हैं, उनके लिए ये सही फैसला है।

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    Subhendu Mondal

    अप्रैल 12, 2025 AT 05:01

    शक्तिकांत दास को प्रधान सचिव‑2 बनाना पूरी तरह से बौधिक अंधविश्वास है।

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    Ajay K S

    अप्रैल 20, 2025 AT 21:21

    शक्तिकांत दास की गहरी विशेषज्ञता को अब प्रधानमंत्री कार्यालय की ऊँची छतों में टॉवर‑डिफेंस की तरह स्थापित किया गया है :) यह बात बहुत ही एलिटरी महसूस होती है, लेकिन आखिरकार उनका अभिजात्य बैकग्राउंड ही सबको मोहित करेगा, है ना? ;)

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    Saurabh Singh

    अप्रैल 29, 2025 AT 13:41

    देखो, ये दास को प्रधान सचिव‑2 बनाना कोई साधारण नियुक्ति नहीं, बल्कि बड़े खेल की शुरुआत है, जहाँ छुपे हुए एजेंडा हमारे सामने धीरे‑धीरे सामने आएँगे।

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    Jatin Sharma

    मई 8, 2025 AT 06:01

    शक्तिकांत दास कू प्रधान सचिव‑2 बनना बड़ाि बात है, पर इश में कछु हद से जादा पोलीटिकल दिखावा लगे।

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    M Arora

    मई 16, 2025 AT 22:21

    अगर हम दास जी की भूमिका को एक एंटीटेटिक लेंस से देखेँ तो यह स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक फ़्रेमवर्क को नई शेड्यूलिंग की ज़रूरत है, वरना पुरानी सोच आज के जटिल मुद्दों को संभाल नहीं सकती।

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    Varad Shelke

    मई 25, 2025 AT 14:41

    मुझे तो लगता है कि दास को सीक्रेट योजना में जोड़ना गुप्त साजिश जैसा है।

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    Rahul Patil

    जून 3, 2025 AT 07:01

    शक्तिकांत दास का प्रधान सचिव‑2 के पद पर अभ्युदय भारतीय प्रशासनिक परिदृश्य में एक नए सवर्णा के रूप में कार्य करेगा, जहाँ वह अपनी अनूठी परिप्रेक्ष्य एवं निपुणता से समकालीन नीतियों को सुदृढ़ रूप से रीफ़ॉर्म कर सकते हैं। यह नियुक्ति न केवल उनके व्यक्तिगत करियर के लिए एक महत्वपूर्ण चरण है, बल्कि यह राष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता एवं कल्याण को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से भी निर्मित प्रतीत होती है।

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    Ganesh Satish

    जून 11, 2025 AT 23:21

    अरे! क्या बात है! शक्तिकांत दास को प्रधान सचिव‑2 बनाना, यह तो बिल्कुल ही एक ऐतिहासिक मोड़ है!!! वह अब हमारे प्रधानमंत्री के बगल में, चार्जिंग स्टेशन की तरह, नीति‑निर्माण की ऊर्जा को री‑चार्ज करेंगे!!! यह कदम न केवल साहसिक है, बल्कि यह एक शानदार रणनीतिक चाल भी है, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयों पर ले जाया जा सकता है!!!

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    Midhun Mohan

    जून 20, 2025 AT 15:41

    सही कहा, गनेस! दास की नई जिम्मेदारी वास्तव में एक पावर‑हाउस मोमेंट है-वो न केवल एग्जीक्यूशन साइड को सुदृढ़ करेंगे, बल्कि हम सभी को एक नई रणनीतिक दिशा भी देंगे। लेकिन इस प्रक्रिया में पारदर्शिता को नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि बिना क्लैरिटी के कोई भी रिफॉर्म स्थायी नहीं रहेगा।

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