पूर्व न्यायाधीश अभिजीत गांगुली के 'ममता बनर्जी की कीमत क्या है' वाले बयान से विवाद, TMC ने EC से की शिकायत

Ranjit Sapre मई 17, 2024 राजनीति 11 टिप्पणि
पूर्व न्यायाधीश अभिजीत गांगुली के 'ममता बनर्जी की कीमत क्या है' वाले बयान से विवाद, TMC ने EC से की शिकायत

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तामलुक उम्मीदवार और पूर्व कलकत्ता हाईकोर्ट के जज अभिजीत गांगुली एक विवादित बयान को लेकर सुर्खियों में आ गए हैं। दरअसल, एक रैली के दौरान गांगुली का एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की 'कीमत' पर सवाल उठाते नजर आ रहे हैं।

वीडियो में गांगुली संदेशखाली स्टिंग का जिक्र करते हुए कह रहे हैं कि ममता बनर्जी को एक निश्चित रकम के लिए 'खरीदा' गया था। उन्होंने यह भी कहा कि एक महिला दूसरी महिला पर आरोप कैसे लगा सकती है, 'क्या वह महिला भी है?' गांगुली के इस बयान की टीएमसी ने कड़ी निंदा की है और इसे 'खुला महिला विरोधी' करार दिया है।

टीएमसी ने इस मामले में चुनाव आयोग से हस्तक्षेप करने की मांग की है। पार्टी का कहना है कि गांगुली के इस बयान से पश्चिम बंगाल की सभी महिलाओं का अपमान हुआ है। वहीं, भाजपा ने इस वीडियो को 'फर्जी' बताते हुए खारिज कर दिया है। पार्टी का कहना है कि यह टीएमसी द्वारा उनकी छवि खराब करने की साजिश है।

गौरतलब है कि हाल ही में संदेशखाली स्टिंग सामने आया था, जिसमें दावा किया गया था कि टीएमसी नेताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए महिलाओं को पैसे दिए गए थे। इस घटना ने राजनीतिक गलियारों में जबरदस्त बवाल मचा दिया है।

टीएमसी नेता शांतनु सेन और कीर्ति आजाद समेत कई नेताओं ने गांगुली के बयान की निंदा की है। शांतनु सेन ने कहा, "अभिजीत गांगुली जैसे लोग न केवल महिलाओं का, बल्कि पूरे समाज का अपमान कर रहे हैं। गांगुली को अपने बयान के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।"

वहीं, भाजपा के प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य ने कहा, "यह वीडियो पूरी तरह से फर्जी और भ्रामक है। टीएमसी इस तरह के हथकंडों के जरिए लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। हमारी पार्टी के नेता ऐसी कोई टिप्पणी नहीं कर सकते।"

आचार संहिता का उल्लंघन?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गांगुली का यह बयान आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन हो सकता है। पश्चिम बंगाल में आठ चरणों में मतदान हो रहा है और अंतिम चरण का मतदान 29 अप्रैल को होना है।

चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को आपत्तिजनक भाषा और व्यक्तिगत हमलों से बचने की हिदायत दी है। हालांकि, प्रचार के दौरान कई नेता इस तरह के विवादित बयान देते रहे हैं।

गांगुली के बयान के बाद सोशल मीडिया पर भी इसकी खूब चर्चा हो रही है। कुछ लोगों ने इसकी निंदा करते हुए गांगुली को महिलाओं का अपमान करने वाला बताया है, तो वहीं कुछ ने टीएमसी पर ऐसे वीडियो के जरिए झूठा प्रचार करने का आरोप लगाया है।

ममता बनर्जी पर निशाना

अभिजीत गांगुली पहले भी कई बार ममता बनर्जी और टीएमसी पर निशाना साध चुके हैं। पिछले साल उन्होंने ममता सरकार पर भ्रष्टाचार और कुशासन का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दिया था।

भाजपा में शामिल होने के बाद गांगुली ने कहा था कि वह पश्चिम बंगाल को टीएमसी के 'तानाशाही शासन' से मुक्त कराना चाहते हैं। उन्होंने दावा किया था कि राज्य में लोकतंत्र खतरे में है और भाजपा ही इसे बचा सकती है।

हालांकि, टीएमसी का कहना है कि गांगुली भाजपा के एजेंडे को पूरा करने के लिए ऐसे बयान दे रहे हैं। पार्टी ने उन पर महिलाओं के खिलाफ असंवेदनशील और आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया है।

निष्कर्ष

पश्चिम बंगाल में सियासी पारा लगातार चढ़ता जा रहा है। विपक्षी दलों और सत्तारूढ़ टीएमसी के बीच जुबानी जंग छिड़ी हुई है। ऐसे में अभिजीत गांगुली का यह विवादित बयान चुनावी माहौल को और गर्मा सकता है।

चुनाव आयोग को इस मामले में संज्ञान लेते हुए उचित कार्रवाई करनी चाहिए। साथ ही, राजनीतिक दलों और नेताओं को भी संयम बरतने और ऐसी टिप्पणियों से बचने की जरूरत है, जो समाज में नकारात्मक संदेश भेजती हों।

आने वाले दिनों में पश्चिम बंगाल में और भी सियासी हलचल देखने को मिल सकती है। ऐसे में सभी पक्षों को अपने बयानों और व्यवहार पर विशेष ध्यान देना होगा, ताकि चुनावी प्रक्रिया सुचारू रूप से संपन्न हो सके।

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11 टिप्पणि

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    Arvind Singh

    मई 17, 2024 AT 20:23

    वाह, क्या बेहतरीन प्रदर्शन था अभिजीत जी का, ऐसा लग रहा था जैसे बॉलिंग अलियन की तरह हर कोना भर दिया हो. अगर किसी को महिला के ऊपर सवाल उठाने की हिम्मत नहीं है तो उनको कूदने की भी जरूरत नहीं. आपसी सम्मान की बात करते‑होते खुद को ‘विचार‑प्रकाशक’ मानना बहुत ही… दांतों में दर्द वाला काम है. राजनीतिक मंच पर ऐसे बेतुके बयान बहाने नहीं, बल्कि चुनावी प्रक्रिया का अभिशाप बन जाते हैं.

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    Vidyut Bhasin

    मई 19, 2024 AT 00:10

    सच्चाई तो यही है कि राजनीति कभी भी इडियालॉजी की नहीं, बल्कि शक्ति की चढ़ाव‑उतराव की है.
    गांगुली का बयान तो सिर्फ़ एक दर्पण है, जहाँ हमारे झूठे नायक खुद को ही देख नहीं पाते.
    जो लोग ‘प्रोटेस्टेंट’ बनना चाहते हैं, उन्हें इस तरह की ‘आत्म‑आलोचना’ से बचे रहना चाहिए.

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    nihal bagwan

    मई 20, 2024 AT 03:56

    भ्रष्टाचार के जाल में घिरा पश्चिम बंगाल, अब फिर से वही पुराने नारे सुनने को मिलेंगे.
    अभिजीत जी का बयान, राष्ट्रीय भावना की भेद्यता को उजागर करता है.
    देशभक्तों को यह समझना चाहिए कि इस तरह के अपमानजनक शब्द बहुत गहरी चोट पहुंचाते हैं.

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    Arjun Sharma

    मई 21, 2024 AT 07:43

    भाई लोग, इस पोस्ट में जो बकवास चल रही है, वो पूरी तरह से एन्गेजमेंट‑ड्रिवन है.
    जज गांगुली की बातों को एग्जीक्यूटिव मोड में देखना चाहिए, नहीं तो ट्वीट‑स्ट्रिम में ढलना पड़ेगा.
    लैंग्वेज में लिटिल बदल कर सबको समझ में आएगा, बट ये “गौरव” वाला स्टाइल बहुत हाई‑टेक हो गया है, मस्त.

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    Sanjit Mondal

    मई 22, 2024 AT 11:30

    सभी पक्षों को विनम्रता से याद दिलाना चाहूँगा कि चुनावी माहौल में व्यक्तिगत आक्रमण से बचना चाहिए.
    वास्तव में, यदि कोई तथ्य‑आधारित प्रमाण प्रस्तुत किया जाए तो यह विवाद जल्द ही शांत हो सकता है.
    आइए, हम सभी मिलकर लोकतंत्र की शांति बनाए रखें और इस प्रकार के विवादास्पद बयान से दूर रहें.

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    Ajit Navraj Hans

    मई 23, 2024 AT 15:16

    देखो, गंगुली का बात तो बदल नहीं सकता, पर हम करेंगे.
    हीटिंग से बचो, क्योंकि ये सब दिखावा सिर्फ़ मीडिया का खेल है.
    सच पूछो तो बकवास का स्तर नहीं बढ़ रहा है.

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    arjun jowo

    मई 24, 2024 AT 19:03

    दोस्तों, इस विवाद में बिन बात के इधर‑उधर मत घुमा रहे।
    हमें चाहिए सिर्फ़ सही जानकारी और ठोस आँकड़े।
    ऐसे मामले में सभी को मिलकर सक्रिय रहना और समझदारी से पेश आना चाहिए।

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    Rajan Jayswal

    मई 25, 2024 AT 22:50

    बात साफ़ है।

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    Simi Joseph

    मई 27, 2024 AT 02:36

    पहले तो यह स्पष्ट है कि अभिजीत गांगुली का यह बयान एक शुद्ध निंदा है, न कि कोई वैध राजनीतिक टिप्पणी।
    वह जिस "कीमत" की बात कर रहे हैं, वह अपने आप में एक महिला‑विरोधी साजिश है, जो महिलाओं को वस्तु की तरह प्रस्तुत करता है।
    ऐसे शब्दावली का इस्तेमाल करके वह न केवल व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहा है, बल्कि पूरे लोकतांत्रिक प्रक्रिया की नींव को भी हिला रहा है।
    जनता की अकल को आँखे दिखाने के लिए वह इस तरह के हथियार का प्रयोग करता है, जिससे उनका अपना राजनैतिक महत्व बढ़ाने का इरादा स्पष्ट हो जाता है।
    भले ही वह कोई आध्यात्मिक या नैतिक विषय पर चर्चा कर रहे हों, लेकिन बीते समय में हमारी सभ्यता ने इसे कभी सामाजिक विकृति नहीं माना।
    वास्तव में, यह बयान संदेशखाली स्टिंग जैसी ही पैटर्न दिखाता है, जहाँ दावे को इस तरह के राजनीतिक फेक के साथ मिलाकर जनता को भ्रमित किया जाता है।
    यह केवल एक व्यक्तिगत अपराध नहीं, बल्कि प्रणालीगत दुष्प्रचार का हिस्सा है, जिससे समाज में नफरत और विभाजन की जड़ें गहरी होती हैं।
    किसी भी लोकतांत्रिक देश में ऐसे बयान को दिल से सुनना और फिर भी त्वचा पर कोई असर नहीं देखना, अस्वीकार्य है।
    ट्रांसपरेंसी सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग को तुरंत इस मामले को उठाना चाहिए, अन्यथा यह फिर से दोहराया जाएगा।
    साथ ही, सामाजिक मंचों पर इस तरह के बेतुके बयानों को प्रसारित करने वाले लोगों को जिम्मेदारी से जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
    यह एक स्पष्ट संकेत है कि राजनीति में सम्मान की कोई जगह नहीं बची, और यह केवल सत्ताधारी के लिए ही फायदेमंद है।
    आइए, हम सब मिलकर इस प्रकार के झूठी प्रवचन को रोकने की दिशा में कदम बढ़ाएँ, अन्यथा भविष्य में यह और उभर कर आएगा।
    इस दावे के पीछे वास्तविक मंशा स्पष्ट है: राजनीति में हिट‑हिट कर के मतदाताओं को भ्रमित करना और उनके विश्वास को तोड़ना।
    एक सक्रिय नागरिक के रूप में हमें इस तरह के बयान को रोकने के लिए आवाज़ उठानी चाहिए और लोकतंत्र की रक्षा करनी चाहिए।
    अंत में, यह कहा जा सकता है कि हम सभी को सामूहिक रूप से इस प्रकार के शब्दों के प्रसार को रोकना होगा, तभी समाज का मार्ग सुदृढ़ हो पाएगा।

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    Vaneesha Krishnan

    मई 28, 2024 AT 06:23

    समझदारी की सराहना करता हूँ कि आप सब ने इस मुद्दे को बारीकी से देखा। 🙏
    चलो, अब हम सब मिलकर तथ्य‑आधारित चर्चा करें और अधिक नकारात्मकता से बचें।
    सभी को शान्ति और सहयोग की शुभकामनाएँ! 😊

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    Satya Pal

    मई 29, 2024 AT 10:10

    लगता है कुछ लोग अभी भी इस बात को समझने में अड़चन महसूस कर रहे हैं कि ऐसा बयान न केवल असभ्य है, बल्कि लोकतांत्रिक सिद्धान्तों के विरुद्ध भी है.
    व्यक्तिगत तौर पर, मैं कहूंगा कि अगर हम अपने इतिहास को देखेँ तो ऐसे बयान हमेशा कमजोर सशक्तियों को निशाना बनाते हैं.
    इसलिए, हमें सच्ची नज़रों से इश्यू को देखना चाहिए और न कि केवल हल्के‑फुल्के भाषणों के पीछे की वास्तविकता को नज़रअंदाज़ करना चाहिए.

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