जब हम बात डिस्लोकेटेड कंधा, ऐसे स्थिति की जहाँ कंधे की हड्डी अपने प्राकृतिक सॉकेट से बाहर निकलती है की करते हैं, तो तुरंत कई सवाल उभरते हैं। इस शब्द को अक्सर कंधा डिस्लोकेशन कहा जाता है, लेकिन दवाएं, इमरजेंसी देखभाल और फिजियोथेरेपी की भूमिका भी बराबर महत्त्वपूर्ण है। पहली बार सुनते ही दुःख महसूस हो सकता है, पर सही जानकारी और शीघ्र उपचार से जीवन में फिर से मज़बूत ढंग से चलना संभव है।
सबसे आम कारणों में खेल‑खेल में चोट है – जैसे बास्केटबॉल, रग्बी या स्कीइंग में अचानक झटका। इसी तरह सड़क दुर्घटनाएँ, गिरना या भारी वस्तु उठाते समय गलत मुद्रा भी कंधे के जोड़ को बाहर धकेल देती है। कुछ लोग मूल्यवान आनाटॉमिक कमजोरी की वजह से ऐसी चोट का शिकार होते हैं, जैसे कंधे की लिगामेंट्स में पहले से ही ढीलापन। उम्र बढ़ते ही हड्डियों की घनत्व में गिरावट आती है, जिससे डिस्लोकेशन का जोखिम बढ़ जाता है।
जब डिज़लॉकेशन हो जाता है, तो शरीर तुरंत संकेत भेजता है: तेज़ दर्द, कंधे का अजीब सा सुनना या झटका जैसा महसूस होना, और अक्सर हाथ को उठाने में कठिनाई। इस समय इमेजिंग टेस्ट जैसे X‑ray या MRI की जरूरत पड़ती है, ताकि डॉक्टर हड्डी की मौजूदा स्थिति और आसपास के टिश्यू को देख सके। बिना सही डाइग्नॉसिस के उपचार शुरू करना अक्सर पुनः डिस्लोकेशन या स्थायी गठिया का कारण बन जाता है।
एक बार निदान हो जाने के बाद, उपचार दो मुख्य राहों में बाँटा जाता है – संरक्षणात्मक (नॉन‑सर्जिकल) उपचार और सर्जिकल हस्तक्षेप। अधिकांश हल्के केस में पेनकिलर्स, बाँह को सपोर्ट करने वाले स्लिंग, और फिजियोथेरेपी के माध्यम से मसल्स को मजबूत किया जाता है। फिजियोथेरेपी में रेंज‑ऑफ‑मोशन एक्सरसाइज़, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग और प्रोप्रियोसेप्शन ड्रिल्स शामिल होते हैं, जो जोड़ को फिर से स्थिर करने में मदद करते हैं।
गंभीर डिस्लोकेशन, विशेषकर जब हेड‑ऑफ़‑ह्यूमर (हड्डी का ऊपरी भाग) पूरी तरह से बाहर निकल जाता है, तो सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। सर्जिकल विकल्पों में डॉर्सी अथॉराइट या एर्गोनॉमिक लिगामेंट रीप्लेसेमेंट शामिल हैं, जो जोड़ को फिर से सही जगह पर लाने और स्थिर रखने में मदद करते हैं। ऑपरेशन के बाद भी फिजियोथेरेपी की जरूरत पड़ती है, लेकिन रोगी अक्सर पहले से तेज़ी से रीहैबिलिटेशन शुरू कर सकता है।
डिस्लोकेटेड कंधा की रिकवरी का सबसे अहम हिस्सा है रीहैबिलिटेशन प्रोग्राम। यह प्रोग्राम रोगी के अनुसार कस्टमाइज़ किया जाता है: शुरुआती हफ्तों में हल्की स्ट्रेचिंग, उसके बाद धीरे‑धीरे वजन उठाने वाले एक्सरसाइज़, और अंत में स्पोर्ट्स‑स्पेसिफिक मूवमेंट्स। कई बार रोगी को एक महीने में पूरी तरह से काम पर लौटने की सलाह नहीं दी जाती; आमतौर पर 3‑6 महीने का समय लगता है, जिसमें सावधानीपूर्वक प्रगति की जाँच होती है।
डिस्लोकेशन से बचने के लिए रोज़मर्रा की आदतों में बदलाव जरूरी है। वॉर्म‑अप एक्सरसाइज़, सही एर्गोनोमिक पॉज़्चर, और नियमित स्ट्रेंथ ट्रेनिंग कंधे की लिगामेंट्स को मजबूत बनाते हैं। अगर आप ऐसे खेल खेलते हैं जिनमें कंधे पर ज्यादा दबाव पड़ता है, तो कोच या ट्रेनर से सही तकनीक सीखें। छोटे बच्चों को भी भारी बोझ उठाने से बचाना चाहिए, क्योंकि उनके हड्डी‑मसल सिस्टम अभी विकसित हो रहा है।
यदि आप या आपका कोई जानने वाला डिस्लोकेटेड कंधा के लक्षण महसूस कर रहा है, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें। शुरुआती चरण में सही उपचार दर्द को कम कर सकता है और लंबे समय के जॉइंट डैमेज को रोक सकता है। नीचे दिए गए लेखों में हम ने हाल के केस स्टडी, विशेषज्ञों के टिप्स और विस्तृत फिजियोथेरेपी प्लान को कवर किया है, जिससे आप अपने या अपने परिवार के लिए सही निर्णय ले सकें। अब आगे बढ़ते हुए देखें कि ये जानकारी आपके डिस्लोकेशन की समझ को कैसे गहरा बनाती है।
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