भारत के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश बने जस्टिस बीआर गवई, ऐतिहासिक शपथ समारोह

Ranjit Sapre मई 15, 2025 राष्ट्रीय 5 टिप्पणि
भारत के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश बने जस्टिस बीआर गवई, ऐतिहासिक शपथ समारोह

जस्टिस बीआर गवई का सत्कार और ऐतिहासिक शपथ

इतिहास ने एक नया मोड़ लिया जब जस्टिस भुषण रामकृष्ण गवई ने 14 मई 2025 को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के तौर पर शपथ ली। वे न सिर्फ पहले बौद्ध बल्कि अनुसूचित जाति समुदाय से दूसरे व्यक्ति बने हैं जो मुख्य न्यायाधीश के उच्चतम पद तक पहुंचे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में बड़े सम्मान के साथ उन्हें शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जैसी हस्तियां मौजूद थीं। हर चेहरा कुछ अलग देखने और सुनने को तैयार था, क्योंकि इस बार इतिहास खुद बनते हुए दिखाई दिया।

शपथ ग्रहण की खास बात यह रही कि गवई ने न्यायपालिका से जुड़े अपने साथियों को 'जय भीम' कहकर अभिवादन किया। यह उनके सामाजिक आधार और प्रतिबद्धता का प्रतीक भी है। उनकी मां ने मीडिया से बातचीत में बताया कि यह सफलता गवई की मेहनत और अथक प्रयासों का नतीजा है, जो कभी भी किसी शॉर्टकट पर विश्वास नहीं रखते थे।

करियर की यात्रा और प्रमुख फैसले

1985 से कानूनी सफर शुरू करने वाले जस्टिस गवई ने बॉम्बे हाईकोर्ट में राजा एस. भोंसले के अधीन वकालत की। 1987 में बॉम्बे हाईकोर्ट का हिस्सा बन जाने के बाद, उनका अनुभव लगातार बढ़ता गया। साल 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट जज नियुक्त किया गया। तब से वे कई संवैधानिक फैसलों के केंद्र में रहे।

2023 में जब सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 के विशेष दर्जे को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया, तब भी गवई संविधान पीठ के अहम सदस्य थे। उनके फैसलों में संतुलन, संवेदनशीलता और संविधान के मूल्यों की झलक साफ दिखाई देती है।

गवई की नियुक्ति, न्याय प्रणाली में सामाजिक विविधता और प्रतिनिधित्व की मजबूती का भी संकेत देती है। उनके कार्यकाल से उम्मीद है कि न्यायिक सुधारों और संवैधानिक व्याख्याओं पर उनका खास जोर रहेगा—चाहे वह न्यायिक प्रक्रिया को तेज़ करने की पहल हो या फिर न्यायिक जवाबदेही बढ़ाने का कदम। छह महीने के इस छोटे पर अहम कार्यकाल में उनकी न्यायिक सोच के कई रंग देखने को मिलेंगे।

जस्टिस गवई का यह ऐतिहासिक चयन न केवल उनके करियर की उपलब्धि है, बल्कि वंचित समुदायों और सामाजिक न्याय के लिए प्रेरणा का प्रतीक भी बन गया है। अब सभी की नजरें उनके न्यायमूर्ति कार्यों और नए सुधारों पर टिकी रहेंगी।

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5 टिप्पणि

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    shiv prakash rai

    मई 15, 2025 AT 19:03

    जस्टिस बीआर गवई की शपथ सुनकर ऐसा लगा जैसे इतिहास ने अचानक अपनी पुरानी फाइलें खोल कर नया अध्याय लिख दिया हो।
    वही बरसों से देर तक इंतजार करते रहे थे, अब एक बौद्ध और अनुसूचित जाति का प्रतिनिधि सबसे ऊँची कुर्सी पर बैठा है।
    यह सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि सामाजिक संरचना में बदलाव का संकेत है, है ना?
    सच पूछो तो, हमारी अदालतें अक्सर बहसों की जड़ में ही अटक जाती हैं, लेकिन गवई जैसे जज के आने से नई ऊर्जा मिल सकती है।
    उनका 'जय भीम' का अभिवादन, सामाजिक जुड़ाव का प्रतीक है, शायद न्यायाधीश भी कभी भी आम आदमी की तरह महसूस कर सकते हैं।
    भले ही इस बात पर बड़ा शोर नहीं है, लेकिन यह एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण संकेत है कि विविधता का महत्व अब सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि कर्मों में भी दिखता है।
    हमारे देश की लोकतांत्रिक जड़ें कभी‑कभी ऐसी ही सच्चाइयों की तलाश में रहती हैं।
    बिल्कुल, कुछ लोग इसे राजनीति का हिस्सा मानेंगे, पर मेरे ख्याल से यह एक सच्ची सामाजिक प्रगति है।
    हालाँकि, इस नई लहर का प्रभाव कब तक रहेगा, यह तो समय ही बताएगा, पर आशा है कि यह सिर्फ एक ट्रेंड नहीं, बल्कि स्थायी बदलाव हो।
    वहीं, गवई जी ने अब तक जिन संवैधानिक मामलों में भाग लिया है, उनमें उनका संतुलन और संवेदनशीलता दिखी है, जो नविनतम विचारों को भी संभाल सके।
    समय के साथ जब उनका कोर्ट रूम में फैसला आएगा, तो जनता को देखना चाहिए कि क्या यह झुकाव सच में न्याय के पक्ष में है या नहीं।
    एक तरफ़ हम उन्हें सराहते हैं और दूसरी तरफ़ हम यह भी देखते हैं कि क्या यह नया चेहरा पुराने ढांचों को तोड़ पाएगा।
    वहीं, हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि केवल एक ही व्यक्ति से सभी समस्याओं का समाधान नहीं निकलता, लेकिन यह एक कदम है।
    फिर भी, इस विशेष शपथ समारोह में मौजूद सभी प्रमुख नेता यह दिखाते हैं कि यह बदलाव केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि संस्थागत स्तर पर भी समर्थन पा रहा है।
    आख़िरकार, जब न्याय को विविधता और समानता के साथ जोड़ा जाए, तो वह राष्ट्रीय प्रगति की बड़ी डोर बन सकती है।

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    Subhendu Mondal

    मई 15, 2025 AT 19:53

    बिलकुल बेकार चॉइस, एक और कास्ट के बौडध ने ही समझा देगा सबको।

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    Ajay K S

    मई 15, 2025 AT 21:00

    वाह, क्या शान है! एक बौद्ध जस्टिस, हर कोई इतनी बेसहारा लायक है। 😊
    लगता है अब न्याय को भी योगा क्लासेस की ज़रूरत होगी।
    आलास नहीं, मैं तो बस इतना कहूँगा कि ये टॉपिक हमारे एलीट समझेंगे, बाकी कोडिंग छोड़ दो।

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    Saurabh Singh

    मई 15, 2025 AT 21:50

    इसे सब जाली बनावट के पीछे कोई अंधेरी साज़िश छिपी है, देखना बाकी है।

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    Jatin Sharma

    मई 15, 2025 AT 23:13

    सच में, जस्टिस गवई की कहानी प्रेरणा देती है।
    अगर नई पीढ़ी इसे देखे तो शायद और लोग भी अपना लक्ष्य पाते।
    छोटा-छोटा प्रयासही बड़ा बदलाव लाएगा, बस धीरज रखो।

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