दिल्ली बाढ़: यमुना 207.43 मीटर पर, 12 हजार से ज्यादा लोग सुरक्षित स्थानों पर

दिल्ली बाढ़: यमुना 207.43 मीटर पर, 12 हजार से ज्यादा लोग सुरक्षित स्थानों पर
Ranjit Sapre
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दिल्ली बाढ़: यमुना 207.43 मीटर पर, 12 हजार से ज्यादा लोग सुरक्षित स्थानों पर

यमुना 207.43 मीटर पर, खतरे के निशान से काफी ऊपर—राजधानी में आपात हालात

दिल्ली बाढ़ का सबसे कड़ा चेहरा एक बार फिर दिख रहा है। यमुना का जलस्तर 207.43 मीटर तक पहुंच गया—यह 1963 के बाद तीसरा सबसे ऊंचा स्तर है। खतरे का निशान 205.33 मीटर है, जिसे बुधवार सुबह ही नदी पार कर चुकी थी। शाम होते-होते स्तर 207.39 मीटर तक गया और 2013 के 207.32 मीटर रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया। अब यह 1978 के 207.49 मीटर के पीक के बेहद करीब है, जबकि जुलाई 2023 में 208.66 मीटर का ऑल-टाइम हाई दर्ज हुआ था।

बारिश का दौर लगातार जारी है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने पूर्वोत्तर, पूर्व, मध्य और दक्षिण दिल्ली में रेड अलर्ट जारी किया है, जबकि बाकी इलाकों में ऑरेंज अलर्ट है। अंदेशा यही है कि 6 सितंबर तक गरज-चमक के साथ मध्यम बारिश रुक-रुक कर होती रहेगी। 7 और 8 सितंबर को आसमान ज्यादातर बादलों से ढका रह सकता है। ऊपर की धाराओं—खासकर उत्तराखंड—में बारिश कम होने की संभावना से राहत की उम्मीद है, पर इसका असर दिल्ली तक पहुंचने में समय लगता है।

प्रशासन ने एहतियात बढ़ा दिए हैं। 12,000 से ज्यादा लोगों को निचले इलाकों से निकालकर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है। यमुना खादर, बेलाघाट, सोनीया विहार, सिविल लाइंस, विश्वकर्मा कॉलोनी और यमुना बाज़ार जैसे इलाके पानी में घिरे हैं। 38 राहत शिविर सक्रिय हैं—कई अस्थायी तंबुओं में, कुछ स्थायी शेल्टर होम्स में। राजस्व विभाग के अनुसार, 8,018 लोगों को टेंट में और 2,030 लोगों को 13 स्थायी आश्रयों में शिफ्ट किया गया है।

बचाव कार्यों की कमान एनडीआरएफ और स्थानीय एजेंसियों ने संभाल रखी है। एनडीआरएफ की एक दर्जन से ज्यादा टीमें नावों और मोटरबोट्स के साथ तैनात हैं। बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों को प्राथमिकता पर निकाला जा रहा है। राहत शिविरों में पीने का पानी, सूखा राशन, दूध, दवाएं और जरूरत का सामान पहुंचाया जा रहा है। कई स्थानों पर पशुओं के लिए अलग अस्थायी बाड़े बनाए गए हैं ताकि परिवारों को अपने मवेशियों से अलग न होना पड़े।

राजधानी का रोजमर्रा का जीवन बुरी तरह प्रभावित है। रिंग रोड, बेला रोड, मजनूं का टीला-सलीमगढ़ बाईपास, फीरोजशाह कोटला रोड, कृष्णा मेनन मार्ग, मथुरा रोड और आउटर रिंग रोड के हिस्सों में जलभराव से आवाजाही धीमी है। यमुना के किनारे स्थित निगमबोध घाट और गीता कॉलोनी ग्राउंड में अंतिम संस्कार की सेवाएं अस्थायी तौर पर रोकी गई हैं। ट्रैफिक पुलिस वैकल्पिक मार्गों को डायवर्ट कर रही है, लेकिन पीक आवर में देरी तय है। कम जरूरी यात्राएं टालने की सलाह दी गई है।

हालात बिगड़ने की बड़ी वजह हरियाणा के हाथनिकुंड बैराज से भारी डिस्चार्ज है। आम दिनों में जहां 50,000 क्यूसेक के आसपास पानी छोड़ा जाता है, वहीं शाम तक यह आंकड़ा 1.78 लाख क्यूसेक तक पहुंच गया। ऊपर के पहाड़ी राज्यों—उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर—में लगातार बारिश से नदियां उफान पर हैं, और उन्हीं धाराओं का पानी दिल्ली पहुंचकर यमुना के स्तर को तेजी से बढ़ा रहा है। प्रशासन ने जुलाई 2023 जैसी स्थिति दोबारा न बने, इसके लिए आईटीओ बैराज के सभी गेट्स को चालू रखने और प्रमुख रेगुलेटर्स को समय रहते बंद करने जैसे कदम उठाए हैं।

उत्तर भारत इस वक्त व्यापक संकट से गुजर रहा है। पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन और फ्लैश फ्लड्स ने सड़कें, पुल और गांव उजाड़ दिए हैं। अब तक कम-से-कम 90 लोगों की जान जा चुकी है और हजारों परिवार सुरक्षित ठिकाने ढूंढने को मजबूर हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि मानसून पैटर्न में बदलाव—कम दिनों में बहुत ज्यादा बारिश—जलवायु परिवर्तन का संकेत है। नदियों के बेसिन और शहरों के ड्रेनेज सिस्टम इस तीव्रता के लिए तैयार नहीं हैं, इसलिए पानी जल्दी चढ़ता और धीरे उतरता है।

दिल्ली में भी यही चुनौती सामने है। यमुना के फ्लडप्लेन पर बसी अनौपचारिक बस्तियां पानी के पहले झटके में ही डूब जाती हैं। ड्रेन और नालों की क्षमता सीमित है, और जब बैराज से तेज रिलीज होता है तो बैकफ्लो से निचले क्षेत्र तुरंत जलमग्न हो जाते हैं। विशेषज्ञ वर्षों से कहते रहे हैं—फ्लडप्लेन को खुला छोड़ना, ड्रेनेज मास्टर प्लान को अपग्रेड करना, और जलभराव वाले हॉटस्पॉट्स पर परमानेंट पंपिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करना ही रास्ता है।

फिलहाल फोकस जान-माल की सुरक्षा पर है। अस्पतालों और एम्बुलेंस सेवाओं को हाई-अलर्ट पर रखा गया है। बिजली और पानी की लाइनें जहां खतरे में हैं, वहां सप्लाई शटडाउन नियंत्रित तरीके से किया जा रहा है, ताकि शॉर्ट-सर्किट और दूषण से बचा जा सके। स्कूलों, कॉलेजों और दफ्तरों में प्रशासन ने स्थिति के अनुसार निर्णय लेने की सलाह दी है—ऑनलाइन मोड जहां संभव हो, प्राथमिकता दी जा रही है।

मौसम विभाग का अनुमान है कि जैसे ही उत्तराखंड जैसे कैचमेंट क्षेत्रों में बारिश कम होगी, यमुना में चढ़ाव धीमा पड़ेगा। मगर बैराज के डिस्चार्ज और निचले इलाकों में बैकवॉटर के असर से पानी का उतरना उतनी तेजी से नहीं होगा। आम तौर पर, चरम स्तर के 24–48 घंटे बाद स्थिति स्थिर होने लगती है—बशर्ते नई भारी बारिश न हो।

सवाल उठता है—आगे क्या? 2023 के रिकॉर्ड बाढ़ के बाद दिल्ली सरकार और एजेंसियों ने कई ऑपरेशनल सुधार किए थे: बैराज गेट्स का नियमित डीसिल्टिंग, प्रमुख प्वाइंट्स पर रियल-टाइम गेज मॉनिटरिंग, और त्वरित अलर्टिंग सिस्टम। इस बार उन कदमों की टेस्टिंग असल मैदान में हो रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि दीर्घकाल में फ्लडप्लेन को रीजोन करना, वेटलैंड्स की बहाली और स्पंज-शहर मॉडल—जैसे रेन गार्डन, परकोलेशन पिट्स, और हरित कॉरिडोर—घटती जलधारण क्षमता की समस्या को कम कर सकते हैं।

लोगों के लिए जरूरी सावधानियां भी स्पष्ट हैं। नदियों और नालों के किनारे जाने से बचें। अंडरपास, सबवे और निचली पार्किंग में वाहन ले जाने का जोखिम न लें। बिजली के पोल और खुले तारों से दूरी रखें। घर के जरूरी दस्तावेज, दवाएं और सूखा राशन एक वाटरप्रूफ बैग में रखें। बच्चों और बुजुर्गों की विशेष देखभाल करें। प्रशासन के अलर्ट और मैसेज को प्राथमिकता दें—अफवाहों से नहीं, आधिकारिक अपडेट से ही जानकारी लें।

  • बाढ़ के समय गाड़ी बंद पड़े तो तुरंत बाहर निकलें, पानी बढ़ने का इंतजार न करें।
  • पीने के पानी को उबालकर या फिल्टर कर ही उपयोग करें, बाढ़ का पानी अक्सर दूषित होता है।
  • किसी भी रेस्क्यू बोट या टीम के निर्देशों का पालन करें, नदी किनारे भीड़ न लगाएं।
  • पड़ोस के बुजुर्ग और दिव्यांग नागरिकों की मदद सबसे पहले करें।

जमीन पर काम कर रही टीमें बताती हैं कि राहत शिविरों में सबसे ज्यादा जरूरत साफ पानी, स्वच्छ शौचालय, बच्चों के दूध और महिला स्वच्छता किट की रहती है। प्रशासन ने इस बार स्टॉकिंग पहले से बढ़ाई है, पर भीड़ अचानक बढ़ने पर दबाव बन ही जाता है। शहरी बाढ़ की चुनौती यही है—इन्फ्रास्ट्रक्चर का डिज़ाइन औसत बारिश के हिसाब से होता है, जबकि असल में हमें चरम घटनाओं के लिए तैयार रहना पड़ता है।

अगले कुछ दिन अहम हैं। अगर ऊपर की तरफ बारिश मंद हुई और बैराज का डिस्चार्ज घटा तो यमुना का स्तर धीरे-धीरे नीचे आएगा। तब तक, निचले और नदी किनारे के इलाकों में रहने वालों को सतर्क रहना होगा। एजेंसियां रेस्क्यू और रिलीफ मोड में हैं—और शहर को सुरक्षित रख पाने की कुंजी नागरिकों के सहयोग, समय पर फैसलों और साफ-सुथरे संचार में है।

ट्रैफिक, सेवाएं और प्रशासनिक प्लान—यह जानना ज़रूरी है

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ट्रैफिक पुलिस ने जलभराव प्रभावित कॉरिडोर्स पर पेट्रोलिंग बढ़ाई है। रिंग रोड और आउटर रिंग रोड के कमजोर हिस्सों पर बारिकेडिंग की गई है। जो लोग रोज इन मार्गों से गुजरते हैं, वे सुबह-शाम अतिरिक्त समय रखें और सार्वजनिक परिवहन का विकल्प चुनें। रात के समय दृश्यता कम होती है, इसलिए तेज बहाव वाले पैच से गुजरना खतरनाक है।

सिविक सेवाओं में सबसे बड़ा जोखिम जल-निकासी और कचरा प्रबंधन को लेकर है। नालों में ठोस कचरा बहकर जाम बनाता है, जिससे बैकफ्लो और बढ़ता है। राहत शिविरों में कचरे के पृथक्करण और नियमित डिस्पोज़ल की व्यवस्था रखी जा रही है, ताकि संक्रमण का खतरा न बढ़े। स्वास्थ्य विभाग ने बुखार, डायरिया और त्वचा रोगों के लिए मोबाइल मेडिकल यूनिट तैनात की हैं।

यमुना के पुराने रेलवे पुल पर गेज रीडिंग्स को घंटे-घंटे मॉनिटर किया जा रहा है। जैसे ही चढ़ाव थमेगा, प्राथमिकता होगी—रिहायशी गलियारों से पानी निकालना, बिजली-पानी सप्लाई को सुरक्षित तरीके से बहाल करना और प्रभावित परिवारों को घर लौटने से पहले नुकसान का आकलन कराना। इस बार फोकस ‘बिल्ड बैक बेटर’ पर भी है—यानी जो भी रिपेयर हो, वह अगली भारी बारिश के लिए ज्यादा सक्षम हो।

दिल्ली-एनसीआर की कहानी फिलहाल संघर्ष और समन्वय की है। मौसम, नदी और शहर—तीनों की धड़कन एक-दूसरे से बंधी है। जब बारिश मूसलाधार होती है, नदी उफनती है; और जब नदी उफनती है, शहर की गलियां उसकी राह बन जाती हैं। फर्क इतना है कि तैयारी साथ हो तो पानी की दस्तक भारी नहीं पड़ती। यही सीख इस बाढ़ में भी दोहराई जा रही है।

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