दैनिक मिल्क प्रोसेसिंग वॉल्यूम और बाजार में हिस्सेदारी
भारत के दो सबसे बड़े दुग्ध सहकारी‑कंपनियों में से एक, दूध की कीमत को लेकर चर्चा का मुख्य केंद्र बन गया है। गुजरात सहकारी दूध विपणन वाणिज्य संघ (GCMMF) द्वारा चलाए जाने वाले Amul, हर दिन 35 मिलियन लीटर से अधिक दूध प्रोसेस करता है। यह आंकड़ा 18,600‑से अधिक गाँव के डेयरी सहकारी से आकर उत्सर्जित होता है, जहाँ लगभग 36 लाख किसान मिल्क वैक्यूम कर काम करते हैं। इस बड़े नेटवर्क के कारण Amul ने 24 बिलियन से अधिक प्रोडक्ट पैक 50 से अधिक देशों में निर्यात कर वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है।
दूसरी ओर Mother Dairy, राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड (NDDB) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी, मुख्यतः दिल्ली‑एनसीआर में 3.2 मिलियन लीटर दैनिक आपूर्ति करती है। ऑपरेशन फ्लड के तहत स्थापित यह ब्रांड, शुरुआती वर्षों में केवल दूध तक सीमित रहा, लेकिन आज यह ताज़ा फल‑सफ़ल, डीहाइड्रेटेड खाद्य पदार्थ, दालें, तेल आदि जैसी विस्तृत श्रेणियों में भी सक्रिय है।
- Amul के प्रमुख उत्पाद: गोल्ड, ताज़ा, स्लिम एंड ट्रिम, चाय मज़ा, काउ फॉर्मूला, बफ़ेलो मिल्क, स्टैण्डर्ड।
- Mother Dairy की पेशकश: पोच्ड मिल्क (हाई, लो‑फैट), लूज़ मिल्क, लाइट मिल्क, फ़्रीज्ड डेज़र्ट आदि।
कीमत बढ़ोतरी के कारण और प्रभाव
मई 2025 में दोनों बड़े प्लेयर्स ने एक साथ कीमत बढ़ाने का निर्णय लिया। Amul ने सभी फ्रेश पोच्ड मिल्क वेरिएंट पर 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की घोषणा 1 मई से कर दी। Mother Dairy ने भी पोच्ड और लूज़ मिल्क दोनों में 1‑2 रुपये की इजाफा किया, जिससे कुल मिलाकर लगभग 5‑6% की कीमत बढ़ी।
इन दोनों कंपनियों ने इस कदम को दो मुख्य कारणों से उचित ठहराया:
- उच्चतम प्रोक्योरमेंट लागत: गर्मी के कारण दूध के उत्पादन में कमी और फीड की कीमत में 4‑5 रुपये प्रति लीटर तक की बढ़ोतरी हुई।
- किसानों के हित में सहारा: Amul ने बताया कि खरीदार द्वारा दिये गये हर रुपये का 80 पाईस सीधा किसानों को जाता है, इसलिए बढ़ती लागत को संतुलित करने के लिए कीमत बढ़ाना जरूरी था।
परिणामस्वरूप आम जनता के लिये जूसी कीमतें बढ़ी, जिससे कई परिवारों की मासिक बजट पर दबाव पड़ा। गरीबी रेखा के करीब रहने वाले घरों में दूध का सेवन कम हो सकता है, जिससे पोषण संबंधी समस्याओं की संभावना बढ़ती है। दूसरी ओर यह कदम किसानों को कुछ हद तक राहत देता है, क्योंकि अब उन्हें कच्चे दूध के लिए अधिक पैसा मिलता है, जिससे उनकी आय में सुधार की उम्मीद है।
बाजार विश्लेषकों का अनुमान है कि अगर इस तरह की कीमत वृद्धि नियमित रूप से जारी रहती है, तो दुग्ध उत्पादों के उपभोक्ता वर्ग में बदलाव आ सकता है—ज्यादा लोग बजट‑फ्रेंडली ब्रांड या वैकल्पिक विकल्प अपनाने लगेंगे। इसी समय, छोटे स्थानीय डेयरी और बाइ-टू‑कैंटीन मिल्क फॉर्मूलेटरों को भी उच्च लाभ मार्जिन मिल सकता है, क्योंकि वे अक्सर कम कीमत पर खरीदे जा रहे होते हैं।
पर्यवेक्षक यह भी नोट कर रहे हैं कि Amul और Mother Dairy के बीच कीमत निर्धारण का समकालिक होना इस बात का संकेत हो सकता है कि उद्योग में एक सामूहिक मूल्य संरेखण चल रहा है। यह संरेखण अक्सर निर्यात, कच्चे माल की उपलब्धता, और मौसमी जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों से प्रेरित होता है।
भविष्य की दृष्टि में, अगर प्रोसेसिंग वॉल्यूम स्थिर रहे और किसानों को तकनीकी सहायता मिलती रहे, तो कीमतों में स्थिरता बनी रह सकती है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन, फीड की कीमतें और उपभोक्ता की खरीद शक्ति की अनिश्चितताएँ इस बाजार को हमेशा संवेदनशील रखती हैं।
Paurush Singh
सितंबर 23, 2025 AT 08:21ये कीमतें बढ़ाना कोई साधारण मामला नहीं, ये तो पूरी इंडस्ट्री का एक सवाले जैसा चलन है। अगर हम किसान के सीधे हक की बात करे तो ये उपाय सही लग सकता है, पर आखिरकार उपभोक्ता बोझ उठाएगा। कीमत में 2-3 रुपये की इजाफा हर घर के बजट पर असर डालता है, खासकर उन लोगों के लिए जो पहले से ही तंग हैं। इसलिए, इस प्रकार की समकालिक मूल्य नीति को प्रश्न के बिना स्वीकृत नहीं करना चाहिए।
Sandeep Sharma
अक्तूबर 2, 2025 AT 10:21अरे यार, Amul और Mother Dairy दोनों ने एक साथ दाम बढ़ा दिया? 🤨 ऐसा लगता है जैसे कोई क्वीन ने थ्रोन पर बैठे हुए सबको एक साथ टैक्स कर दे।
अब तो हमें बस ‘बजट‑फ्रेंडली’ ब्रांडस की तरफ देखना पड़ेगा, नहीं तो पॉकेट में holes हो जाएंगे! 😅
Mita Thrash
अक्तूबर 11, 2025 AT 12:21सही कह रही हूँ, मौसमी परिवर्तन, फीड की कीमतों में उछाल, और सप्लाई‑डिमांड का असंतुलन ये सभी कारक हैं जो इस तरह के मूल्य समायोजन को वैध बनाते हैं।
इकनोमिक टर्म्स में इसे ‘Cost‑Pass‑Through’ कहते हैं, जहाँ प्रोड्यूसर अपने अतिरिक्त खर्च को कंज्यूमर पर ट्रांसफर करता है।
बिल्कुल, यह एक टेकर‑ऑफ़ है, लेकिन साथ ही यह किसान की आय में भी सकारात्मक योगदान देता है। यह एक जटिल संतुलन है जिसे नीति निर्माताओं को समझना चाहिए।
shiv prakash rai
अक्तूबर 20, 2025 AT 14:21बाजार में कीमतें बढ़ना तो आज की वास्तविकता है, लेकिन ये ‘समकालिक’ आंदोलन थोड़ा अजीब लग रहा है। अगर दोनों कंपनियों ने मिलके बढ़ाया, तो क्या यह कोई गुप्त समझौता है? वैसे भी, हमें चाहिए कि हम अपने स्थानीय डेयरी को सपोर्ट करें, जहाँ कीमतें तेज़ी से नहीं बढ़तीं।
Subhendu Mondal
अक्तूबर 29, 2025 AT 16:21हाहा बताओ कैसे! तुम लोग दाम बढ़ाने का बहाना बनाते हो, लेकिन असल में तो बड़े प्रॉफिट बिठा रहे हो।
तुम्हारी ये “किसान की भलाई” की बात, बिल्कुल टोटका बोरडर में ही रहेगी। उदासी ना करो, सबको पता है तुम लोग का खराचै।