परिचय
‘गुल्लक’ की चौथी सीजन को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि इस शो ने अपनी प्रारंभिक जादू खो दी है। टीवीएफ की इस सीरीज ने सोनीलिव पर एक मजबूत दर्शक वर्ग बनाया था, परंतु इस बार कहानी व्यापक और गहरी नहीं बन पाई। श्रीयंश पांडे द्वारा रचित और विदित त्रिपाठी द्वारा लिखित इस श्रृंखला ने चतुर्थ सत्र में अपना उस पुराने रंग और गंध को खोते हुए दिखा है।
कहानी और निष्पादन
पहले तीन सीजनों में ‘गुल्लक’ ने जिस दिलचस्पी और भावनाओं से हमें बांधा था, वह इस बार कमतर महसूस होती है। जमीले खान, गीतांजलि कुलकर्णी, वैभव राज गुप्ता, हर्ष मयार, और सुनीता राजवार की अदाकारी फिर भी औसत रहे। इन अभिनेताओं ने अपने पात्रों को जिन्दा रखने का भरपूर प्रयास किया, परंतु कहानी में किसी विशेष बदलाव की कमी ने इसे बहुत हद तक स्थिर बना दिया है।
तथ्यों की कमी
शो ने अपने प्रारंभिक एपिसोड्स में न केवल मध्यम वर्गीय जीवन को बड़े प्रभावशाली तरीके से पेश किया, बल्कि उनकी समस्याओं और संघर्षों को भी बखूबी उकेरा था। अतः इस बार की समीक्षा में यही कमी खटकती है कि 'गुल्लक 4' उस वास्तविकता से दूर चली गई है, जो पहले तीन सीजनों में काफी प्रमुख थी। अब इसमें वही पुराने कथा सूत्रों को दुहराव किया गया है, जिससे दर्शकों का कनेक्शन कमजोर हुआ है।
भावुकता और नाटकीयता का प्रयोग
सीरीज में भावुकता और नाटकीयता का प्रयोग अत्यधिक होना भी एक सकारात्मक पहलू न होकर नकारात्मक सिद्ध हुआ है। आवाज में बचत गुड़िया की कथानक में ज्ञान बाँटने की प्रवृत्ति भी कुछ ज्यादा ही प्रतीत होती है। इसके बावजूद दर्शकों को फिर से ढेरी दर्शन और गुरुज्ञान सुनने को मिलते हैं, जो कम से कम बार बार सुनने लायक नहीं है।
चरित्रों का स्थितिविशेष
सीरीज के पात्रों की बात की जाए तो यह पहले जैसे ही मध्यमवर्गीय परिवार की चीजों और समस्याओं से जुड़ा हुआ है, मगर जीवन के कालिख और वास्तविकता की कमी महसूस होती है। यहां उन काले पक्षों को नजरअंदाज किया गया है, जो आमतौर पर हमारे समाज का हिस्सा होते हैं। इसका कोई नयापन और क्रिएटिविटी नहीं दिखता।
नॉस्टेल्जिया पर जोर
‘गुल्लक 4’ की कोशिशें कहीं न कहीं नॉस्टेल्जिया और सामान्यता पर अधिक केंद्रित रही हैं, जो इसके कुछ महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं को नजरांदाज करती हैं। खासतौर पर उन कठिनाइयों से भी इसका नाता नहीं रहा, जो अक्सर मध्यमवर्गीय परिवारों का अभिन्न हिस्सा होती हैं।
निष्कर्ष
ऐसा प्रतीत होता है कि ‘गुल्लक’ की चमक अब पहले जैसी जीवंत नहीं रही। इसका प्रारंभिक जादू, जो जीवन की साधारण चीजों में खासियत को देखने की प्रवृत्ति को दर्शाता था, अब कहीं खो गया है। चौथे सीजन उन्हें दर्शकों की आशा और अपेक्षाओं के तट से दूर लगता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
विज्ञान भी कहता है कि किसी भी चीज में अति करने से उसकी गुणवत्ता कम हो जाती है। ‘गुल्लक 4’ के मामले में यही सच हुआ है। यह सीरीज उन दर्शकों के दैनिक जीवन की सामान्यता और उनकी छोटी-बड़ी समस्याओं को व्यक्त करने में असफल रही है, जिससे यह अब पिछड़े वर्ग के दिलों में पहले जैसा स्थान नहीं बना पाई है।
समाप्ति
अंततः, ‘गुल्लक’ ने प्रारंभिक सत्रों में जो प्रभाव डाला था, वह चौथे सत्र में कायम नहीं रह पाया। यह श्रृंखला अब ऐसी सीरिज की स्थिति में पहुंच गई है, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि इसे एक नए दृष्टिकोण और नए विचारों की आवश्यकता है। इसके बिना यह नयापन और गहराई खोती चली जाएगी।