कमला हैरिस के भारतीय गांव में उत्साह, जो बाइडन के समर्थन के बाद जश्न की तैयारी

Ranjit Sapre जुलाई 22, 2024 अंतरराष्ट्रीय 9 टिप्पणि
कमला हैरिस के भारतीय गांव में उत्साह, जो बाइडन के समर्थन के बाद जश्न की तैयारी

कमला हैरिस के पैतृक गांव में उत्साह

तमिलनाडु के छोटे से गांव थुलासेंद्रपुरम में आजकल जश्न का माहौल है। यह गांव भारतीय मूल की और वर्तमान में अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का पैतृक गांव है। जब से यह खबर आई है कि राष्ट्रपति जो बाइडन ने कमला हैरिस को लोकतांत्रिक राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन दे दिया है, गांव की रौनक बढ़ गई है। यहां के लोग पहले से ही कमला हैरिस के राजनीतिक उन्नति की ख़बरें बड़ी ही उत्सुकता से देख रहे थे और अब वे उनकी राष्ट्रपति बनने की संभावना से अत्यधिक उत्साहित हैं।

अतीत के जश्न

जब कमला हैरिस अमेरिकी उपराष्ट्रपति बनी थीं, तब थुलासेंद्रपुरम में बड़ा उत्सव मनाया गया था। गांव वालों ने फटाखे फोड़कर और पोस्टर तथा कैलेंडर बांटकर अपनी खुशी जताई थी। गांव के मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन भी किया गया था और मंदिर में उनके नाम की पट्टिका भी लगाई गई थी। यह सब कुछ इस बात का प्रतीक था कि भले ही कमला हैरिस अमेरिका में हो, लेकिन उनका दिल हमेशा अपने पैतृक गांव के करीब रहा।

विशेष उम्मीदें

यदि कमला हैरिस राष्ट्रपति चुनाव जीतती हैं, तो गांव में इस बार का जश्न और भी भव्य होगा। लोगों का कहना है कि यह उत्सव भारत के क्रिकेट विश्व कप जीतने के जश्न जैसा होगा। गांव के लोग कमला हैरिस के प्रति गर्व महसूस करते हैं और उन्हें गांव की 'बेटी' मानते हैं। यद्यपि कमला हैरिस उपराष्ट्रपति बनने के बाद गांव नहीं आ पाई हैं, लेकिन यहां के लोग उम्मीद कर रहे हैं कि वह उनके समर्थन को सराहेंगी और शायद कभी गांव भी आएंगी।

गांव वालों की तैयारियां

गांव वालों की तैयारियां

थुलासेंद्रपुरम के लोगों ने कमला हैरिस की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की तैयारी शरू कर दी है। गांव में कई स्थानों पर उनके पोस्टर लगाए गए हैं और लोग बधाइयाँ संदेश देना शुरू कर चुके हैं। मंदिर में एक बार फिर विशेष पूजा की योजना बनाई जा रही है ताकि उनकी दौड़ सफल हो। यह सब दर्शाता है कि गांव वाले कमला हैरिस की जीत के लिए कितने उत्साहित और आशान्वित हैं।

विशेष संबंध

कमला हैरिस का थुलासेंद्रपुरम गांव से विशेष संबंध है। यही वह स्थान है जहां उनके नाना-नानी रहा करते थे। गांव के बुजुर्गों को ये गर्व है कि वे कमला हैरिस से जुड़े हुए हैं और वे उनकी उपलब्धियों को बड़े गर्व के साथ देख रहे हैं। गांव के लोग उनकी हर खबर को बड़े ध्यान से देखते हैं और उनकी सफलता की प्रार्थना करते हैं।

आगे की राह

भविष्य में, यदि कमला हैरिस राष्ट्रपति बन जाती हैं, तो इस छोटे से गांव का महत्व और भी बढ़ जाएगा। यहां के लोग गर्व से कहेंगे कि दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिला नेता उनका अपना खून है और इसे दुनिया के सामने प्रस्तुत करेंगे। उम्मीद की जा रही है कि उस वक़्त तक अधिक संख्या में लोग इस गांव का दौरा करेंगे और यहां के लोग उनसे मिलकर अपनी खुशी व्यक्त करेंगे।

इस प्रकार, कमला हैरिस के पैतृक गांव थुलासेंद्रपुरम में जश्न की तैयारियां और उनके प्रति लोगों का प्यार किसी बड़े पर्व से कम नहीं है। यहां के लोग पूरे गर्व और जोश के साथ उनकी राष्ट्रपति बनने की कामना कर रहे हैं और उनकी हर सफलता को व्यक्तिगत सफलता मानते हैं।

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    कमला हैरिस के भारतीय गांव में उत्साह, जो बाइडन के समर्थन के बाद जश्न की तैयारी

    तमिलनाडु के थुलासेंद्रपुरम गांव में खुशी का माहौल है क्योंकि कमला हैरिस अमेरिकी राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल हुई हैं। यह उनका पैतृक गांव है और यहां के लोग उन्हें अपनी बेटी मानते हैं। जब वह उपराष्ट्रपति बनी थीं, गांव ने बड़े धूमधाम से जश्न मनाया था। उनके राष्ट्रपति बनने की संभावना पर लोग एक बार फिर भव्य उत्सव की तैयारी कर रहे हैं।

9 टिप्पणि

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    Archana Thakur

    जुलाई 22, 2024 AT 22:01

    हमारी राष्ट्रीय अभिरुचि में यह स्पष्ट है कि थुलासेंद्रपुरम का हर नागरिक भारतीय स्वाभिमान के अभिन्न कड़ी है; कमला हैरिस की संभावित राष्ट्रपति पद की आकांक्षा को हम भारतीय संरचना के भीतर एक बिंदु के रूप में देख रहे हैं, जो हमारे भू-राजनीतिक रणनीति के लिये एक रणनीतिक लाभ प्रदान करेगा। इस संदर्भ में "डायस्पोरा पॉलिसी" और "सॉफ्ट पावर" शब्दावली का प्रयोग उचित है, क्योंकि यह खंडीय सहयोग को सुदृढ़ करेगा।

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    Ketkee Goswami

    अगस्त 8, 2024 AT 08:28

    कमला हैरिस की संभावनाओं को देख कर दिल खिल उठता है! हम सभी को इस मौके को एक चमकदार भविष्य की ओर कदम मानना चाहिए, जहाँ भारतीय गर्व और अमेरिकी अवसर एक साथ मिश्रित हों। ऐसा जश्न हमारे शहर की रौनक को नया आयाम देगा, जो बिल्कुल रंग-बिरंगे तिरंगा की तरह चमकेगा।

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    Shraddha Yaduka

    अगस्त 24, 2024 AT 18:55

    थुलासेंद्रपुरम के लोगों को इस समर्थन से सकारात्मक ऊर्जा मिल रही है। एक कोच की तरह हम सबको अपना भरोसा बनाए रखना चाहिए और इस आशा को धीरे-धीरे बढ़ाते रहना चाहिए।

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    gulshan nishad

    सितंबर 10, 2024 AT 05:21

    अरे, क्या सच में यह इतना बड़ा मामला है? लोग यहाँ जश्न का माहौल बना रहे हैं, पर असल में क्या इससे गाँव की वास्तविक प्रगति होगी? यह सब तो बस दिखावे जैसा लग रहा है, पर मैं तो वही देखता हूँ जो सतही है।

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    Ayush Sinha

    सितंबर 26, 2024 AT 15:48

    हर कोई एक ही धागे से बंधा है, पर कभी‑कभी हमें वैकल्पिक दृष्टिकोण की जरूरत होती है। मैं तो देखता हूँ कि यह उत्साह शॉर्ट‑टर्म हाइप से भी हो सकता है, इसलिए सीधे‑सादे लहजे में कहूँ तो इसे थोड़ा तर्कसंगत रूप से देखना चाहिए।

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    Saravanan S

    अक्तूबर 13, 2024 AT 02:15

    विचारों की विविधता अत्यंत महत्वपूर्ण है; इस पहल में हम सभी को समान रूप से अपना समर्थन देना चाहिए; इस प्रकार सामुदायिक सहयोग और एकजुटता की भावना को प्रबल किया जा सकता है; यह उत्सव केवल एक क्षणिक झलक नहीं, बल्कि दीर्घकालिक सकारात्मक प्रभाव रखेगा।

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    Alefiya Wadiwala

    अक्तूबर 29, 2024 AT 12:41

    पहले यह समझ लेना आवश्यक है कि थुलासेंद्रपुरम का ये उत्सव केवल स्थानीय भावना नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत की नई रणनीतिक स्थिति को प्रतिबिंबित करता है। एक वैश्विक दर्सन के तहत, हम देख सकते हैं कि भारतीय डायस्पोरा की पहचान और अमेरिकी राजनय में इसके संभावित प्रतिफल कैसे समायोजित होते हैं। इस प्रकार, इस जश्न को "सॉफ्ट पावर" के हिस्से के रूप में व्याख्यायित किया जा सकता है।
    अब यदि हम ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखें, तो भारत ने हमेशा विदेशों में अपने नागरिकों की उपलब्धियों को राष्ट्रीय गौरव का स्रोत माना है; इसी कारण से यह उत्सव सामाजिक बंधन को मजबूत करने के लिए उपयोगी है।
    दूसरी ओर, यह भी सिद्ध होना चाहिए कि ग्रामीण विकास के वास्तविक मुद्दे, जैसे बुनियादी ढांचा और शिक्षा, इस तरह के प्रतीकात्मक उत्सवों से नहीं झुके।
    इस द्वंद्व को समझते हुए, हम कह सकते हैं कि नीति निर्माताओं को इस ऊर्जा को व्यावहारिक योजनाओं में बदलना चाहिए।
    उदारवादी दृष्टिकोण से देखे तो, ऐसी सांस्कृतिक अभिव्यक्तियां सामाजिक संतुलन को प्रोत्साहित करती हैं, जिससे जनसांख्यिकी की विविधता को सम्मान मिलता है।
    आखिर में, यदि हम इसे व्यापक अंतरराष्ट्रीय रिश्तों के अंतर्गत देखें, तो यह भारत‑अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों के लिये एक सकारात्मक संकेत बन सकता है।
    समग्र रूप से, इस जश्न को केवल उत्सव नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संकेत के रूप में देखना चाहिए, जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर प्रभाव डाल सकता है।

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    Paurush Singh

    नवंबर 14, 2024 AT 23:08

    सच कहा, इस प्रकार के सामाजिक उत्सव के पीछे गहन दार्शनिक प्रश्न छिपे होते हैं-क्या हम जाति‑भेद न हटाकर एक सार्वभौमिक मानवता की ओर अग्रसर हो रहे हैं? यह न केवल सामाजिक उत्तरदायित्व है, बल्कि दार्शनिक विवेचना का भी विषय।

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    Sandeep Sharma

    दिसंबर 1, 2024 AT 09:35

    वाह, क्या बात है! 🙌

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