16 नवंबर 2025 को एक ही दिन, दो अलग-अलग राज्यों में दो शिक्षक-बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) ने अपनी जान दे दी। मुकेश जांगिड़, राजस्थान के जयपुर के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक, ट्रेन के सामने कूद गए। उनके बगल में एक सुसाइड नोट था: "SIR के काम से बर्बाद हो रहा हूँ।" उसी दिन, केरल के कन्नूर जिले के अनीश जॉर्ज ने अपने घर में फांसी लगा ली। दोनों की उम्र 44 वर्ष, दोनों BLO थे, और दोनों की मौत का कारण एक ही था — SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) का अत्यधिक दबाव।
"टॉप करना है" — दबाव का श्रृंखला प्रभाव
राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विपिन प्रकाश शर्मा ने सीधे बताया: "राज्य को टॉप करना है। कलेक्टर को टॉप करना है। SDM को टॉप करना है।" ये शब्द सिर्फ बातें नहीं, बल्कि एक दबाव की श्रृंखला हैं जो नीचे तक पहुँच जाती है — उन शिक्षकों तक जो सुबह 5 बजे उठकर घर-घर जाकर मतदाता सूची जाँचते हैं, शाम 8 बजे तक डेटा भरते हैं, और फिर अगले दिन अपने कक्षा में बच्चों को पढ़ाते हैं। मुकेश के सुपरवाइजर सीताराम ने उन्हें सस्पेंड करने की धमकी दी। एक शिक्षक के लिए ये धमकी सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि परिवार का भविष्य छीनने की धमकी है।
केरल में लक्ष्य बने जाल, नियम बने जंगल
केरल में तो स्थिति और भी अजीब है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) रथन यू केलकर ने कहा कि "किसी अधिकारी से काम के दबाव की कोई शिकायत नहीं मिली।" लेकिन यही बात सबसे डरावनी है। जब एक आत्महत्या हो जाए, तो शिकायत न मिलना इसका सबूत नहीं कि कुछ गलत नहीं हुआ — बल्कि यह सबूत है कि लोग डर गए हैं। केरल के एमवी जयराजन् ने स्पष्ट किया: "BLOs को 31 दिन के लिए सिर्फ SIR से जुड़े काम सौंपे गए हैं।" यानी वो शिक्षक अब शिक्षक नहीं, सिर्फ डेटा भरने वाले कर्मचारी बन गए। एक शिक्षक की जिम्मेदारी को एक बार फिर डेटा एंट्री के रूप में घटा दिया गया।
"SIR को रोको" — आवाजें बढ़ रही हैं
दोनों राज्यों में शिक्षक संघ और राजनीतिक दलों ने एक ही आवाज उठाई है — SIR को तुरंत स्थगित करो। केरल के BLO संगठनों ने 17 नवंबर 2025 को राज्य भर में काम बहिष्कार करने की घोषणा की। राजस्थान में राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ ने चेतावनी दी: "अर्द्धवार्षिक परीक्षाएं शुरू हो रही हैं। स्कूलों में अध्यापक नहीं हैं।" एक बच्चे के लिए एक शिक्षक की जगह कौन लेगा? जब एक शिक्षक आत्महत्या कर देता है, तो उसकी जगह खाली नहीं होती — बल्कि उसकी मौत एक खाली सीट बन जाती है, जिसके सामने बच्चे बैठे रह जाते हैं।
चुनाव आयोग का निष्कर्ष: डेटा बढ़ाओ, इंसान कम करो
चुनाव आयोग का दृष्टिकोण अजीब है। वे चाहते हैं कि मतदाता सूची 100% सही हो। लेकिन इसके लिए वे उन लोगों को नहीं देखते जो उस सूची को बनाते हैं। एक अधिकारी ने कहा — "हमें 98% डेटा की आवश्यकता है।" लेकिन यह नहीं पूछा गया — "क्या हम उन 2% लोगों को भी देख सकते हैं जो इस प्रक्रिया में टूट रहे हैं?" यह एक बड़ी त्रुटि है। डेटा तो आंकड़े हैं, लेकिन इंसान जीवन हैं। जब एक शिक्षक अपनी जान दे देता है, तो वह आंकड़ा नहीं, एक बेटा, एक पिता, एक शिक्षक गायब हो गया।
अगले कदम: क्या बदलेगा?
अगले कुछ दिनों में कुछ बड़ा होने वाला है। राजस्थान में शिक्षक संघ 17 नवंबर को मुख्यमंत्री को ज्ञापन देगा। केरल में BLOs का काम बहिष्कार होगा। अगर चुनाव आयोग ने अभी तक यह नहीं समझा कि ये आत्महत्याएँ सिर्फ एक शोक हैं, बल्कि एक चेतावनी हैं — तो अगला कदम शायद एक बड़ा विद्रोह होगा। शिक्षक अब सिर्फ शिक्षक नहीं, वे चुनाव प्रक्रिया के लिए इंसानी संसाधन बन गए हैं। और जब इंसानी संसाधन टूट जाएँ, तो प्रणाली भी टूट जाती है।
परिवारों का दर्द: जो बाकी रह गए
मुकेश के भाई गजानंद ने कहा: "कल रात उनका कोई साथी फॉर्म भरने में मदद करके गया था।" यानी वो इतने थक गए थे कि एक दोस्त की मदद भी लेने लगे। अनीश जॉर्ज के परिवार ने कहा — "वो हमेशा अपने काम को गंभीरता से लेते थे।" लेकिन गंभीरता का अर्थ अब अपनी जान देना हो गया है। जब एक व्यक्ति को अपनी जान देने के लिए मजबूर किया जाता है, तो वह व्यवस्था नहीं, वह समाज असफल हो गया है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
SIR क्या है और इसमें BLO की क्या भूमिका है?
SIR यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन, चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई एक अभियान है जिसका उद्देश्य मतदाता सूची में गलतियों और डुप्लीकेट नामों को निकालना है। BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) इसके लिए घर-घर जाकर डेटा जमा करते हैं — ज्यादातर ये शिक्षक या स्थानीय कर्मचारी होते हैं। इनका काम सिर्फ डेटा भरना नहीं, बल्कि लोगों को समझाना, दस्तावेज जाँचना और अक्सर घंटों चलना होता है।
क्या ये आत्महत्याएँ पहली बार हुई हैं?
नहीं। 2019 के चुनावों के दौरान उत्तर प्रदेश में एक BLO ने आत्महत्या कर ली थी, जिसका कारण भी SIR का दबाव बताया गया था। 2021 में तमिलनाडु में भी एक शिक्षक ने इसी कारण जान दे दी। लेकिन हर बार चुनाव आयोग ने इसे "अकेली घटना" बता दिया। अब एक ही दिन दो राज्यों में यह घटना दोहराई गई — यह कोई संयोग नहीं, एक पैटर्न है।
BLO को काम का दबाव क्यों महसूस होता है?
BLOs को अक्सर 1000+ मतदाताओं की सूची जाँचने का लक्ष्य दिया जाता है, जबकि उनके पास दो हफ्ते होते हैं। इन्हें रोजाना रिपोर्ट देनी होती है। अगर किसी जिले का लक्ष्य पूरा नहीं होता, तो कलेक्टर या SDM को निशाना बनाया जाता है। और वो निशाना नीचे तक पहुँच जाता है — BLO तक। ये दबाव शारीरिक नहीं, मानसिक है।
शिक्षकों को ये काम क्यों दिया जाता है?
शिक्षकों को इसलिए चुना जाता है क्योंकि वे स्थानीय लोगों को जानते हैं, संचार करने में अच्छे हैं, और उनके पास एक नियमित शेड्यूल होता है। लेकिन ये एक दुरुपयोग है। शिक्षक एक शिक्षा अधिकारी हैं, न कि एक डेटा कलेक्टर। उनकी नौकरी का मुख्य काम बच्चों को पढ़ाना है — और अब वही काम उनके लिए जीवन-मृत्यु का मुद्दा बन गया है।