मलयालम अभिनेता सिद्दीकी को सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम सुरक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मलयालम अभिनेता सिद्दीकी को एक बलात्कार मामले में अंतरिम संरक्षण प्रदान करने का निर्णय लिया है। इस मामले के पीछे के घटनाक्रम ने भारतीय फिल्म वातावरण में चल रही लैंगिक असमानता और यौन उत्पीड़न की जटिलताओं को एक बार फिर से उभार दिया है। इस मामले का केंद्र 2016 के एक घटना के इर्द-गिर्द घूमता है जहां आरोप लगाया गया है कि थिरुवनंतपुरम के एक होटल में एक युवा महिला अभिनेता के साथ सिद्दीकी द्वारा गलत व्यवहार किया गया था।
मामले की शुरुआत और उच्च न्यायालय का निर्णय
इस मुद्दे की शुरुआत तब हुई जब जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट ने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के साथ भेदभाव और उत्पीड़न पर सवाल उठाया। रिपोर्ट प्रकाशित होते ही एक महिला अभिनेता ने अपनी आपबीती को मीडिया के सामने रखा और थिरुवनंतपुरम पुलिस में एक औपचारिक शिकायत दर्ज करवाई। इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और धारा 506 के तहत सिद्धिक पर एफआईआर दर्ज की गई।
इसके बाद सिद्दीकी ने केरल उच्च न्यायालय में अग्रिम ज़मानत की याचिका दायर की, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया। अदालत ने माना कि एफआईआर दर्ज करने में देरी हमेशा मामले को समाप्त करने का कारण नहीं बन सकती, खासकर जब याचिका यौन अपराध से संबंधित हो। अदालत ने यह भी माना कि पीड़ितों में रिपोर्ट करने में देरी मानसिक और सामाजिक बाधाओं के कारण हो सकती है, जिन्हें समझना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका और वकील की दलीलें
उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अभिनेता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अभिनेता सिद्दीकी के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अपना पक्ष रखते हुए अदालत से कहा कि शिकायतकर्ता ने 2019 से उनके खिलाफ यौन उत्पीडन के झूठे आरोपों का अभियान छेड़ रखा है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कथित घटना के आठ वर्ष पश्चात मुकदमा दायर किया गया था, जो कि अपने आप में संदिग्ध है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और मलयालम फिल्म इंडस्ट्री पर प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए अंतरिम संरक्षण के फैसले ने केवल सिद्दीकी के लिए राहत दी है, बल्कि अन्य कई मलयालम फिल्म हस्तियों के लिए भी चिंता की स्थिति उत्पन्न कर दी है, जो यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे हैं। जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट के बाद मलयालम सिनेमा की जानी-मानी हस्तियों में तनाव बढ़ गया है। एक ओर जहां इन आरोपों ने इस फिल्म उद्योग की छवि को नुकसान पहुंचाया है, वहीं यह घटना यौन उत्पीड़न और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ लड़ाई को नई दिशा प्रदान करती है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे आने वाले दिनों में यह मामले आगे बढ़ते हैं और किस तरह फिल्मों में कामकाजी महिलाओं के लिए एक निर्धारित परिवर्तन की जरुरत पर जोर दिया जाएगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय निश्चित रूप से सामाजिक और न्यायिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और भविष्य में अन्य ऐसे मामलों के लिए एक आदर्श बनेगा।