पिछले कुछ महीनों में कई बड़ी कंपनियों ने बड़े पैमाने पर लेऑफ़ कर दिया है. आप भी शायद अपने या किसी परिचित के बारे में सुन रहे होंगे. तो सच‑मुच्च ये क्यों हो रहा है? चलिए आसान भाषा में समझते हैं.
पहला कारण है आर्थिक slowdown. वैश्विक बाजार की मंदी ने भारतीय कंपनियों को कमाई घटाने पर मजबूर किया, जिससे खर्च कटौती जरूरी हुई. दूसरा, टेक्नोलॉजी का तेज़ विकास. ऑटोमेशन और AI से कई मैन्युअल काम अब मशीनें कर रही हैं, इसलिए वही काम करने वाले कर्मचारी हटाए जा रहे हैं.
तीसरा कारण है बदलते उपभोक्ता व्यवहार. ऑनलाइन शॉपिंग, डिजिटल भुगतान आदि ने परम्परागत रिटेल और बैंकों की मांग को घटा दिया. इस बदलाव से जुड़ी नौकरियों में कटौती हुई. चौथा, सरकार के नए नियम जैसे श्रम कोड का लागू होना, जिससे कंपनियों को लेबर लागत कम करनी पड़ी.
अगर आप या आपका कोई दोस्त छँटनी से प्रभावित हुआ है, तो घबरा निए. सबसे पहले अपना रेज़्यूमे अपडेट करें और LinkedIn जैसे प्रोफाइल को ताज़ा रखें. नई स्किल्स सीखना बहुत फायदेमंद रहेगा – डेटा एनालिटिक्स, डिजिटल मार्केटिंग या क्लाउड कंप्यूटिंग आज की टॉप डिमांड हैं.
सरकार ने कई रेज़्यूमे‑बोर्ड और ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए हैं, जैसे Skill India, PM रोजगार योजना. इनका लाभ उठाकर आप जल्दी नई नौकरी पा सकते हैं. साथ ही, अपने अधिकारों को समझें: अगर कंपनी ने उचित नोटिस या सेवरेंस नहीं दिया, तो आप लेबर कोर्ट में केस कर सकते हैं.
फ्रीलांसिंग भी एक विकल्प है. छोटे प्रोजेक्ट लेकर आप तुरंत आय शुरू कर सकते हैं और धीरे‑धीरे अपना क्लाइंट बेस बना सकते हैं. कई लोग अब गिग इकोनॉमी के जरिए स्थायी नौकरी से ज़्यादा लचीलापन पाते हैं.
आख़िर में, नेटवर्किंग बहुत काम आती है. अपने पुराने सहकर्मियों और उद्योग के लोगों से संपर्क रखें. अक्सर एक रेफ़रेंस या अंदरूनी जानकारी नई जॉब पाने में मदद करती है.
छंटनी की खबरें सुनते समय घबराना स्वाभाविक है, पर सही कदम उठाने से आप इस दौर को आसानी से पार कर सकते हैं. याद रखिए, हर परिवर्तन नया अवसर भी लाता है – बस तैयार रहना चाहिए.
Zoho के संस्थापक श्रीधर वेम्बु ने Freshworks के हालिया छंटनी कदम की तीखी आलोचना की है। वेम्बु का कहना है कि इतने बड़े वित्तीय संसाधनों के बावजूद कर्मचारियों की छंटनी सिर्फ शेयरधारकों के मुनाफे के लिए करना अनुचित है। इसके साथ ही वेम्बु ने अमेरिकी कॉर्पोरेट संस्कृति की भी कड़ी आलोचना की, पूछते हुए कि क्या कंपनियाँ छोटे लाभ के लिए दीर्घकालिक नैतिकता को अनदेखा कर रही हैं।
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