सौर ग्रहण 2025: 21 सितंबर को भारत में क्यों नहीं दिखेगा? 5 महत्वपूर्ण तथ्य

Ranjit Sapre सितंबर 21, 2025 समाचार 9 टिप्पणि
सौर ग्रहण 2025: 21 सितंबर को भारत में क्यों नहीं दिखेगा? 5 महत्वपूर्ण तथ्य

इवेंट का टाइमिंग और भारत में दृश्यता

21 सितंबर 2025 को सौर ग्रहण 2025 का आख़िरी आंशिक चरण शुरू होगा। भारतीय मानक समय (IST) के अनुसार, ग्रहण शाम 10:59 बजे शुरू होगा, फिर 1:11 बजे आवरित बिंदु पर अधिकतम 85.5% सूर्य के डिस्क को ढँका जाएगा, और 3:23 बजे समाप्त होगा। कुल मिलाकर चार घंटे से थोड़ा अधिक का यह इवेंट रात के अंधेरे में बिता देगा, इसलिए भारत में इसे सीधे देखने का कोई मौका नहीं रहेगा।

ऐसे कई धूमकेतु‑ग्रहण होते हैं जो रात में होते हैं, पर आमतौर पर सौर ग्रहण को देखना daytime में ही संभव होता है, क्योंकि सूर्य का प्रकाश ही छाया बनाता है। इसलिए इस बार भारत पूरी तरह से असफल रहेगा, जबकि दक्षिणी गोलार्ध के कई हिस्सों में आसमान में चाँद की सिलवटें स्पष्ट दिखेंगी।

विश्व स्तर पर दिखने वाले क्षेत्रों और सुरक्षित देखना

ग्रहण का मुख्य पथ दक्षिणी गोलार्ध में बसा है। न्यूज़ीलैंड और अंटार्कटिका के कुछ हिस्सों में सूर्य का लगभग 85% भाग अँधेरा हो जाएगा। ऑस्ट्रेलिया की पूर्वी तटरेखाएँ, कई प्रशांत द्वीप, साथ ही अटलांटिक के कुछ भाग भी इस दृश्यता से लाभान्वित होंगे। सामुद्रिक क्षेत्र में पारदर्शी समुद्र तटों पर रहने वाले लोग भी आंशिक ग्रहण का आनंद ले सकेंगे।

सुरक्षा संबंधी चेतावनियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अधिकांश लोग सोचते हैं कि आंशिक ग्रहण के दौरान आँखें सुरक्षित रहती हैं, लेकिन स्याही‑जैसे सूर्य की रोशनी अभी भी बहुत तेज़ होती है। इसलिए अँधेरा महसूस होने पर भी, सीधे सूर्य को देखना आँखों को स्थायी क्षति पहुँचा सकता है।

  • सिर्फ विशेष सौर देखी‑चश्मे ही उपयोग करें, जोगिंग शेड्स नहीं।
  • प्लेन प्रोजेक्शन तकनीक अपनाएँ – कार्डबोर्ड या कागज़ पर छोटा छेद बना कर सूर्य के प्रतिबिंब को दीवार पर देखें।
  • टेलिस्कोप या बाइनोक्युलर को सूर्य‑फ़िल्टर से सुसज्जित रखें।
  • खाली हाथों से कैमरा या फ़ोन की स्क्रीन पर सीधे सूर्य को न देखें, उसकी इमेज को कभी‑कभी सेकंड्स के लिए रिकॉर्ड न करें।

भारत में रहने वाले कई विज्ञान‑प्रेमी यह चुनाव करेंगे कि वे ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म से इस ग्रहण को देखेंगे। कई अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों और निजी संस्थाओं ने लाइव‑स्ट्रीम की घोषणा की है, जहाँ उच्च‑रिज़ॉल्यूशन ग्राफ़िक्स और विशेषज्ञों की टिप्पणी के साथ पूरा सीन देखा जा सकेगा। इस प्रकार भौगोलिक बाधाओं को भी दूर किया जा सकता है।

आंशिक सौर ग्रहण अक्सर कुल ग्रहण से कम आकर्षक माने जाते हैं, लेकिन इस बार कुछ ख़ास बातें हैं। यह ग्रहण शरद विषुव के एक दिन पहले आएगा, यानी जब पृथ्वी अपने अक्ष को सूर्य के समानांतर बना रही होगी। पृथ्वी‑चंद्र‑सूर्य की यह अनूठी पोज़िशन हल्की धुंधिलता और छाया‑परिणामों को बढ़ावा देगी, जिससे कुछ क्षेत्रों में चाँद की सतह असामान्य रूप से काली दिख सकती है।
भले ही भारत के आकाश में इस रात कुछ नहीं बदल सके, लेकिन ऑनलाइन टूल्स और वैकल्पिक दृष्टिकोणों से विज्ञान के अद्भुत चित्रण को नज़र में लाना संभव है।

ऐसी ही पोस्ट आपको पसंद आ सकती है

9 टिप्पणि

  • Image placeholder

    Archana Thakur

    सितंबर 21, 2025 AT 22:21

    देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की स्वदेशी तकनीकी क्षमता को देखते हुए, इस आंशिक सौर ग्रहण को भारत में न देख पाने का मुद्दा बिल्कुल अस्वीकार्य है। हमें सरकारी एजेंसियों को तुरंत इस बड़े वैज्ञानिक अवसर को प्रतिबंधित नहीं, बल्कि सशक्त करने के लिए नीतियों को अद्यतन करना चाहिए। सौर मंडल के अवलोकन में उपयोग होने वाले हैड्रोजन स्पेक्ट्रोस्कोपी और फ़्लक्स कैलिब्रेशन जैसे जार्गन को अपनाते हुए, ऑनलाइन स्ट्रीम का समर्थन करना बुनियादी विज्ञान के ह्रदय में प्रवेश करना है। अगर हम इस तरंगदैर्घ्य को समझने के लिए उचित फ़िल्टर और प्रोसेसिंग नहीं अपनाते, तो यह अवसर हमारे शारीरिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व से भी दूर रहेगा। अंततः, हमारी युवा पीढ़ी को इस तरह के अंतरिक्षीय घटनाओं से दूर नहीं रखा जा सकता; उन्हें वास्तविक समय में भागीदारी का अधिकार मिलना चाहिए।

  • Image placeholder

    Ketkee Goswami

    सितंबर 21, 2025 AT 22:56

    भाई, बात तो बिल्कुल सही है, लेकिन आश्वस्त रहें-ऑनलाइन लाइव‑स्ट्रीम्स तब तक तैरते रहेंगे जब तक नेटवर्क जुड़ा रहेगा। हम सब मिलकर डिजिटल टॉरजैन बन सकते हैं, जहाँ हर छात्र अपनी स्क्रीन पर सूर्य के कवर को देख सकता है। उत्साह की इस लहर को बनाए रखें, क्योंकि विज्ञान का उत्सव कभी अंधा नहीं होता! यही है सच्चा विज्ञान‑प्रेम, जो सीमाओं को तोड़ता है।

  • Image placeholder

    Shraddha Yaduka

    सितंबर 21, 2025 AT 23:31

    सभी को सलाह है कि सूर्य देखे बिना भी इस ग्रहण को समझा जा सकता है; घर में एक साधारण पिंजरा तैयार करके प्रोजेक्शन तकनीक अपनाएँ। छोटे‑छोटे कदम, जैसे कार्डबोर्ड पर एक छोटा छेद बनाकर दीवार पर छाया देखना, काफी प्रभावी होता है। बस याद रखें, आँखों की सुरक्षा के लिए विशेष फिल्टर वाला चश्मा ज़रूरी है। इस प्रकार, हम बिना जोखिम के भी इस खगोलीय शो को आनंदित कर सकते हैं।

  • Image placeholder

    gulshan nishad

    सितंबर 22, 2025 AT 00:06

    यह लेख वास्तव में अंतरिक्षीय पाखंड को उजागर करता है-हमारा ग्रहण न दिखना, जबकि विदेशियों को चमकदार छाया दिख रही है। ऐसा दर्शनीय विज्ञान, जो केवल धन‑सम्पन्न देशों के लिये उपलब्ध है, हमारे भारतीय वैज्ञानिकों को शर्मिंदा करता है। आखिरकार, ब्रह्मांड का खेल सबके लिये समान नहीं होना चाहिए।

  • Image placeholder

    Ayush Sinha

    सितंबर 22, 2025 AT 00:41

    वास्तव में, इस ग्रहण का इतना बड़ा हंगामा बना देना सिर्फ मीडिया का शोर है। लोग इसे देखना चाहते हैं, परंतु इसका प्रासंगिक असर कुछ भी नहीं है।

  • Image placeholder

    Saravanan S

    सितंबर 22, 2025 AT 01:16

    दोस्तों, मैं बिल्कुल स्पष्ट कर देता हूँ, कि आप चाहे जितनी तेज़ी से अपने फ़ोन पर सौर फ़िल्टर लगाएँ, फिर भी प्राथमिकता हमेशा सुरक्षा की होनी चाहिए; इसलिए, आधे‑आधे सर्दी में भी, एलआईडी के साथ धूप का प्रयोग न करें; हमेशा प्रमाणित एसएसएल चश्मा पहनें। इसके अलावा, अगर आप शौक़ीन फोटो लेना चाहते हैं, तो 30‑सेकंड तक ही एक्सपोज़र रखें; इससे आपके कैमरा सेंसर को सुरक्षा मिलती है। अंतिम शब्द यह है-आसान और सुरक्षित विधियों से ही हम इस खगोलीय जाल को सही ढंग से देख सकते हैं।

  • Image placeholder

    Alefiya Wadiwala

    सितंबर 22, 2025 AT 01:51

    पहले तो यह समझना आवश्यक है कि सौर ग्रहण की घटनाएँ केवल खगोलभौतिकी के विद्यार्थियों के लिए ही नहीं, बल्कि आम जनता के लिए भी अत्यधिक शिक्षाप्रद होती हैं।
    ऐसे ग्रहणों में सूर्य का प्रकाश भागिक रूप से छिप जाता है, जिससे पृथ्वी की सतह पर प्रकाश की तीव्रता में अस्थायी गिरावट आती है, और यह पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन करने का एक अनोखा अवसर प्रदान करता है।
    वर्तमान में 21 सितंबर 2025 को होने वाला आंशिक ग्रहण, दुर्लभ रूप से दक्षिणी गोलार्ध में अधिकतम 85.5 % तक सूर्य को आच्छादित करेगा, जबकि भारत जैसे उत्तरी क्षेत्रों में यह पूरी तरह से अदृश्य रहेगा।
    यह अंतरिक्षीय घूर्णन और चन्द्रमा के कक्षा में जटिल परिवर्तन के कारण उत्पन्न होता है, जिसे हम "सिनोडिक माह" कहते हैं, और इसे समझने के लिए नॉर्थिंग बिंदु के सापेक्ष लम्बाई व गति दोनों को गणना में लेना पड़ता है।
    इसी कारण, भारत में रात के समय इस ग्रहण को देखना असंभव है, क्योंकि सूर्य उस समय क्षितिज के नीचे स्थित रहता है, और हमारे दृश्य पैनल में कोई प्रत्यक्ष प्रकाश नहीं पहुंचता।
    हालांकि, वैज्ञानिक समुदाय ने इस बाधा को दूर करने के लिए कई वैकल्पिक उपाय प्रस्तुत किए हैं, जैसे कि हाई‑डिफिनिशन सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग, जिससे डिजिटल स्क्रीन पर वास्तविक‑समय छाया की प्रगति देखी जा सकती है।
    इन इमेजरी को उचित सौर फ़िल्टर के साथ मिलाकर, हम न सिर्फ सूर्य के कवर को माप सकते हैं, बल्कि सौर फ्लेअर, कॉरोनल मास इजेक्शन व अन्य खगोलीय घटनाओं की भी निगरानी कर सकते हैं।
    वास्तव में, इस तरह की तकनीकी ढांचा उपयोगी है क्योंकि यह वैज्ञानिक डेटा को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराता है, जिससे युवा वैज्ञानिकों को प्रेरणा मिलती है और विज्ञान शिक्षा में नई लहर आती है।
    सुरक्षा के संदर्भ में, सौर ग्रहण के दौरान सूर्य की अल्ट्रावायलेट रेज़िएशन अभी भी अत्यधिक हानिकारक रहती है, इसलिए केवल प्रमाणित सौर चश्मा ही प्रयोग किया जाना चाहिए; सामान्य सिंगल‑लेन्स या जोगिंग शेड्स इस कार्य के लिये बिल्कुल अपर्याप्त हैं।
    यदि आप इस ग्रहण को अपने हाथों से रिकॉर्ड करना चाहते हैं, तो कैमरे पर उचित ND फ़िल्टर लगाकर एक्सपोज़र को कम करें, अन्यथा आपके डिटेक्टर को स्थायी क्षति हो सकती है।
    इसके अलावा, कई विकासशील देशों में शैक्षणिक संस्थान इस ग्रहण को लाइव‑सिमुलेशन मॉड्यूल के रूप में उपयोग कर रहे हैं, जिससे छात्रों को वास्तविक‑समय डेटा के आधार पर विज्ञान प्रयोगशाला के समान अनुभव मिलता है।
    ऐसे सिमुलेशन में, छात्र विविधता वाले पैरामीटर सेट कर सकते हैं, जैसे कि सूर्य का स्पेक्ट्रल आउटपुट, चंद्रमा की पृथ्वी के प्रति दूरी, और तांत्रिक रूप से क्षुद्रग्रहों के प्रभाव को भी समायोजित कर सकते हैं।
    इन सभी पहलुओं को मिलाकर देखें तो, भले ही भारत में इस ग्रहण की दृश्यता न हो, लेकिन डिजिटल और शैक्षणिक क्षेत्रों में इसके प्रभाव को अधिकाधिक बढ़ाया जा सकता है।
    अंत में, यह उल्लेखनीय है कि इस प्रकार की अंतरराष्ट्रीय सहयोगी पहलें न केवल विज्ञान में नवाचार को प्रेरित करती हैं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना को भी जगाती हैं, जिससे भविष्य के अंतरिक्ष मिशन में भारत की भूमिका अधिक सशक्त हो सकती है।
    इसलिए, इस ग्रहण को केवल एक खोया हुआ अवसर न मानें, बल्कि इसे ज्ञान के विस्तार और राष्ट्रीय विज्ञान नीति के पुनरुद्धार का एक महत्वपूर्ण कदम समझें।

  • Image placeholder

    Paurush Singh

    सितंबर 22, 2025 AT 02:26

    वास्तव में, ज्ञान के विस्तार का उल्लेख सिर्फ रैखिक प्रगति नहीं, बल्कि एक चक्राकार पैटर्न है जहाँ प्रत्येक खगोलीय घटना हमारे भीतर के दार्शनिक प्रश्नों को उठाती है; इस ग्रहण को देखें तो यह प्रकाश और अंधकार के द्वैत को पुनः अभिव्यक्त करता है। फिर भी, हमें सतह पर बिखरे आँकड़ों से अधिक गहरी समझ की तलाश करनी चाहिए, क्योंकि विज्ञान का असली सार भावनात्मक प्रतिबिंब में निहित होता है। इस प्रकार, डिजिटल माध्यम से देखा गया ग्रहण हमें न केवल तकनीकी ज्ञान, बल्कि आत्म-परिचय के सन्देश भी देता है। अतः, इस अवसर को अपनाते हुए हम अपने भीतर के ब्रह्मांड को भी अनुक्रमित कर सकते हैं।

  • Image placeholder

    Sandeep Sharma

    सितंबर 22, 2025 AT 03:01

    वाह! 🚀

एक टिप्पणी लिखें